आज बिरज में होरी रे रसिया ।।

उतते आये कुँवर कन्हैया, इतते राधा गोरी रे रसिया ।
उड़त गुलाल अबीर कुमकुमा, केशर गागर ढोरी रे रसिया ।
बाजत ताल मृदंग बांसुरी, और नगारे की जोरी रे रसिया ।
कृष्णजीवन लच्छीराम के प्रभु सौं, फगुवा लियौ भर झोरी रे रसिया ।

सजनी भागन ते फागुन आयो, मैं तो खेलूँगी श्याम सँग जाय ।।

खेलूँ आप खिलाऊँ लाल को, मुख पे मलूँ गुलाल ।
वाने भिजोई मेरी फूलन अँगिया, मैं तो भिजोऊँ वाकी पाग ।
चोबा चन्दन अतर अरगजा, अबीर गुलाल उड़ाय ।
बरज रही बरज्यो नहिं मान्यों, हियरा में उठ्यो अनुराग ।
फेंट गुलाल हाथ पिचकारी, करत अनौखे ख्याल ।
जो खेलो तौ सूधे खेलौ, न तो मारूँगी गुलचा गाल ।
कृष्ण जीवन लच्छी राम प्रभु सौं, मानूँगी भाग सुहाग ।

रसिया होरी में मेरे लग जायेगी, मत मारै दृगन की चोट ।।

अबकी चोट बचाय गयी मैं, कर घूँघट की ओट ।
मैं तो लाज भरी बड़े कुल की, तुम तो भरे बड़े खोट ।
पुरुषोत्तम प्रभु ह्वाँ जाय खेलो, जहाँ तिहारी जोट ।

रसिया भँवर बन्यौ बैठ्यौ रहियो रे, चल बस मेरी प्यौसार ।।

नथ गढाऊँ गुरदा गोखुरू रे, खँगवारी के छल्ला छार ।
पलका की दऊँ चाकरी रे, अँचरा ते करूँ ब्यार ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, तोते नैनां लड़ाऊँ द्वै चार ।

रसिया आँखिन में मेरे करके मत डारे अबीर गुलाल ।।
अछन-अछन पाछे अलबेली, निरखि नवेली बाल ।
नयो फाग जोबन रस भीनो, करत अटपटे ख्याल ।
दया सखी घनश्याम लाड़िले, भुज भरि करी निहाल ।

गोरी कुँजन में आज होरी मची है कहा बैठी है माँग सँवारे ।।
मेरी कही जो साँच न मानै, सुन लै ढफ धुँधकारे ।
उठ सजनी चल फाग खेल लै, प्रीतम तोहि पुकारै ।
नारायण तब बात बनेगी, तू जीतै पिय हारै ।

बिहारी छाँड़ि दै होरी में मो सौं बुरी हँसन की बान ।।
या ब्रज घर-घर मेरी तेरी, करत कुचरचा कान ।
औरन की तो कहा परेखौ, घर के करत गुमान ।।
तुम तौ  छैल विदित या जग में, तुमरी नहिं कछु हान ।
निशिदिन सासुल डाटै हम कूँ, औ रखनी कुलकान ।।
जरै रीत या ब्रज की अनौखी, सुन-सुन भई हैरान ।
नागरिदास जो बादर फारै, वा दिन की मुसकान ।।

सखी री मोरमुकट वारो साँवरिया मोय मिल्यो साँकरीखोर ।।
गली साँकरी ऊँची नीची घटियाँ, दई है मटुकिया फोर ।
रतन जटित मेरी इंडुरी जामे, हीरा लाख करोर ।
एकौ हीरा जो खोवै, तेरी सब गायन कौ मोल ।
जैसी बजै तेरी बाँसुरी रे, मेरे नूपुर की घनघोर ।
कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु पर, डारूँगी तिनका तोर ।

छाँड़ो डगर मेरी चतुर श्याम बिंध जावोगे नैनन में ।।
भूल जाओगे सब चतुराई, मारूँगी सैनन में ।
जो तेरे मन में होरी खेलन की, लै चल कुँजन में ।
चोबा चन्दन और अरगजा, छिरकूँगी फागुन में  ।
चंद्रसखी भज बालकृष्ण छबि, लागी है तन मन में ।

ऐसो चटक रंग डार्‌यौ श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग ।।
मोहूँ ते केतिक ब्रजसुंदर, उनसों न खेलै फाग ।
औरन को अचरा न छुवै, या की मोही सौं पड़ गई लाग ।
श्रीबलिदास वास ब्रज छोड़ो, ऐसी होरी में लग जाय आग ।

बिहारी काढ़ि दै मेरी (बेदरदी) करकत आँख गुलाल ।।
सुरझावन दै उरझी मोहन, कंकन सों उरमाल ।
अति अधीर पीर नहिं जानत, मलत अबीर गुलाल  ।
ललित किशोरी रंग कमोरी, ढोरत निठुर गोपाल  ।

लाख लोग नगरी बसौं रसिया बिन कछु न सुहाय ।।
रायबेल केतकी मोंगरा, फूली बाग बहार ।
सबै फूल फीकै लगैं, बिना बलम भरतार ।
देखूँ हूँ दीखै नहिं वह कित, गयो नजर बचाय ।
देख सलोनो गाड़रु, सारिस ज्यों मँडराय ।
बौरी सी दौरी फिरूँ, मोय घर अँगना न सुहाय ।
ढूँढ़न के लाले परे, सागर के हिये समाय ।

 

रसिक छैल नन्द कौ री, हेली नैनन में होरी खेलै ।।
भरि अनुराग दृष्टि पिचकारी, आय अचानक मेलै ।
और कहा लगि कहौं सब विधि, करत भाँवती केलैं  ।
रूम झूम रसिया आनंदघन, रिझै भिजै रस झेलै ।

पिय प्यारी दोउ आज होरी खेलत कालिंदी के तीर ।।
हँस-हँस बदन अरगजा डारत, मारत मूठ अबीर ।
चलत कुमकुमा रंग पिचकारी, भीजि रहे तन चीर ।
जनु घन दामिनि रूप धरै हैं, गोरे श्याम शरीर ।
बजत अनेक भाँति मृदु बाजै, होय रही अति भीर ।
नारायण या सुख निरखै बिन, कौन धरे मन धीर ।

बरज रही नहीं मान्यौ रंगीलौ रंग डार गयौ मेरी बीर ।।
तान दई मम तन पिचकारी, फार्‌यो कंचुकि चीर ।
चूनर बिगर गयी जरतारी, कसकत दृगन अबीर ।
मृदु मुसक्यान कमल नैनन के, छेदत तीर गँभीर ।
क्षण-क्षण छुअत छैल छतियन कौ, परसत सकल शरीर ।
निकस्यो निपट निडर ब्रजवल्लभ, निठुर प्रभु बेपीर ।

नन्द के गैल चलत मोय गारी दई तेरो आवै अचंभौ मोय ।।
निडर भयौ गलियन में डोलै, तोसों और न कोय ।
लै पिचकारी सँग ही सँग आवै, सबरी दई भिजोय ।
आनंदघन रसिया रस लोभी, अब न छोड़ूँगी तोय ।

हेरी मेरो श्याम भँवर मन लै गयो मेरे नैनन में मँडराय ।।
पनिया भरन मैं घर ते निकसी, (मेरे) बाँये बोल्यो आय ।
पनघट पै ठाढ़ो भयौ, मोय भर-भर देय उचाय ।
कैसे तो फूटै याकी गागरी, याय मिलै नन्द को लाल ।
है कोऊ मन की भाँवती, जो श्याम हि देय मिलाय ।
जुगल रूप छबि छैल की, रस सागर रह्यौ लुभाय ।

होरी को खिलार सारी चूनर डारी फार ।।
मोतिन माल गले सों तोरी, लहँगा फरिया रंग में बोरी ।
कुमकुम मूठा मारे मार, सारी चूनर डारी फार ।।
तक मारत नैनन पिचकारी, ऐसो निडर ढीठ बनवारी ।
कर सों घूँघट पट दै डार, सारी चूनर डारी फार ।।
बाट चलत में बोली मारै, चितवन सों घायल कर डारै ।
ग्वाल बाल संग लिये पिचकार, सारी चूनर डारी फार ।।
भरि-भरि झोर अबीर उड़ावै, केशर कीच कुचन लपटावै ।
या ऊधम सों हम गईं हार, सारी चूनर डारी फार ।।
ननद सुने घर देवै गारी, तुम निर्लज्ज भये गिरधारी ।
विनय करत कर जोर तुम्हार, सारी चूनर डारी फार ।।
जब सों हम या ब्रज में आईं, ऐसी होरी नाहिं खिलाई ।
दुलरी-तिलरी तोर्‌यो हार, सारी चूनर डारी फार ।।
कसकत आँख गुलाल है लाला, बड़े घरन की हम ब्रजबाला ।
तुम ठहरे ग्वारिया गँवार, सारी चूनर डारी फार ।।
धन-धन होरी के मतवारे, प्रेमी भक्तन प्रानन प्यारे ।
अवध बिहारी चरनन चित धार, सारी चूनर डारी फार ।।

नैननि में पिचकारी दई मोहि गारी दई होरी खेली न जाय ।।
क्यों रे लंगर लंगराई मोते कीनी, केसर कीच कपोलन दीनी,
लिये गुलाल ठाड़ो मुसकाय, होरी खेली न जाय ।।
नेक न कान करत काऊ की, नजर बचावै बलदाऊ की,
पनघट सों घर लो बतराय, होरी खेली न जाय ।।
औचक कुचन कुमकुमा मारै, रंग सुरंग सीस सों ढारै,
यह ऊधम सुन सास रिसाय, होरी खेली न जाय ।।
होरी के दिनन मोसों दूनो-दूनो अरुझै, शालिग्राम कौन याय बरजै,
अंग लिपट हँसि हा हा खाय, होरी खेली न जाय ।।

आवै अचक मेरी बाखर में होरी को खिलार ।।
अचक-अचक मेरे अँगना आवै, आप नचै और मोय नचावै,
देखत ननदुल खोल किंवार, होरी को खिलार ।।
डारत रंग करत रस बतियाँ, सहज हि सहज लिपट जाय छतियाँ,
यह दारी तेरो लगवार, होरी को खिलार ।।
जानै कहा सार होरी की, समुझै बहुत घात चोरी की,
आखिर तो गायन कौ ग्वार, होरी को खिलार ।।
शालिग्राम नेक हँस बोलै, कपट गाँठ हियरा की खोलै,
लिपटत होय गरे को हार, होरी को खिलार ।।

छबीली नागरी हो धन तेरो परम सुहाग ।।
तेरेइ रंग रंग्यौ मन मोहन, मानत है बड़भाग ।
आज फबी होरी प्रीतम संग, लखियत हैं अनुराग ।
श्रीरूपलाल हित रूप छके दृग, उपमा को नहिं लाग ।

डगर चलत मसकै मेरो पाँव तेरौ कैसो सुभाव ।।
क्यों मोहन गोहन नहिं छाँड़ै, गागर में काँकर दे फोरै ।
साँकरी गली लगावै दाव, तेरौ कैसो सुभाव ।।
साँकरी गली अचानक घेरी, बैयाँ पकर मेरी गागर गेरी ।
मानत नहिं चौगुनो चाव, तेरौ कैसो सुभाव ।।
मोहन प्रकट भयो ब्रज जब ते, शालिग्राम चाव भयो तब ते ।
गालन पै गुलचा द्वै चार, तेरौ कैसो सुभाव ।।

अचक आय उँगरी पकरी याने कैसी करी ।।
अँगुरी पकर मेरो पहुचो पकर्‌यो, कित ह्वै जाऊँ गिरारो सकर्‌यो,

लिपटत लाग रही धकरी, याने कैसी करी ।।
छतियन कीच दई केसर की, मुरकत गूँज खुली बेसर की,
मोतिन माल भली बिखरी, याने कैसी करी ।।
जो कहुँ ननद सुनैगी मेरी, ये होरी की बातें तेरी,
(अँखियन) छतियन बीच गुलाल धरी, याने कैसी करी ।।
शालिग्राम देखियत वारौ, श्रीमुखचन्द्र कमरिया वारौ,
अंतर को कारो सिगरी, याने कैसी करी ।।

ब्रजमण्डल देस दिखाय रसिया ।।

तेरे बिरज में मोर बहुत हैं, कोंहक मोर फटै छतिया ।
तेरे बिरज में गाय बहुत हैं, पी-पी दूध भई पटिया ।
तेरे बिरज में ज्वार-बाजरो, हरी-हरी मूँग उरद कचिया ।
तेरे बिरज में बंदर बहुत हैं, सूनो भवन देख धसिया ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, तेरे चरन मेरो मन बसिया ।

ढफ बाजे कुँवरि किशोरी के ।।

तैसी संग सखी रंग भीनी, छैल-छबीली गोरी के ।
हो हो कहि मोहन मन मोहत, प्रीतम के चित चोरी के ।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी, कर डफ गावत होरी के ।

अंग लिपट हँसि हा-हा खाय होरी खेली न जाय ।।
भर-भर झोर अबीर उड़ावै, केसर कुमकुम मुख लपटावै,
या होरी को कहा उपाय, होरी खेली न जाय ।
कोरे माटन केशर घोरी, पचरंग चूनरि रंग में बोरी,
घर जाऊँ सुने सास रिसाय, होरी खेली न जाय ।।
घूँघट में पिचकारी मारै, सारी चोरी लहँगा फारै,
मुख सों अंचल देय हटाय, होरी खेली न जाय ।।
ग्वालबाल सखियन ने घेर्‌यो, अतर अरगजा नैनन गेर्‌यो,
कनक कलस रंग सिर सों च्वाय, होरी खेली न जाय ।।
सखियन पकरे नन्द कौ लाला, लाली रूप बनायो बाला,
काजर मिस्सी दई लगाय, होरी खेली न जाय ।।
साड़ी औ लंहगा पहिरायो, टिकुली सेंदुर मांग भरायौ,
सीस ओढ़ना दियो उढ़ाय, होरी खेली न जाय ।।
हाथन मेंहदी पांय महावर, बिछुवा पायल पहरे गिरधर,
अद्भुत शोभा बरनी न जाय, होरी खेली न जाय ।।
कान झुबझुबी बाला वारी, नथुनी बलका बेसर धारी,
सोलह सिंगार दियो रचाय, होरी खेली न जाय ।।
जसुदा ढिंग लालन धर धाई, दीन उरहनो बहुत खिजाई ।
अवध बिहारी मन ललचाय, होरी खेली न जाय ।।

बरसाने महल लाड़िली के ।।

और पास वाके बाग-बगीचा, बिच-बिच पेड़ माधुरी के ।
तिन महलन विहरत पिया-प्रीतम, निशिदिन प्रिया चाड़िली के ।
वृन्दावन हित रंग बरसत है, छिन-छिन रस जु बाढ़िली के ।

बरसाने चल खेलैं होरी ।।

पर्वत पे वृषभानु महल है, जहाँ बसे राधा गोरी ।
चोबा चन्दन अतर अरगजा, केशर गागर भर घोरी ।
उतते आये कुँवर कन्हैया, इत ते राधा गोरी ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन कूँ, चिरजीवो मंगल जोरी ।

गहरे कर यार अमल पानी ।।

कूंड़ी सोटा दाब बगल में, भाँग मिरच की मैं जानी ।
इत मथुरा उत गोकुल नगरी, बीच में यमुना लहरानी ।
लै चलि हैं बरसाने तोकूँ, होय भानुघर मेहमानी ।
तोय करैं होरी को भरुवा, हम होंगे तेरे अगवानी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखैं, रस की है ह्वाँ रजधानी ।

किन रंग दीनीं रे रसिया केसर की बूँदन में,

अँगिया किन रंग दीनी रे ।

देखेंगी मेरी सास ननदिया, यह कहा कीनी रे ।
चोबा चन्दन और अरगजा, सौंधै भीनी रे ।
रसिक प्रीतम अभिराम श्याम ने, भुज भर लीनी रे ।

दरसन दै निकसि अटा में ते ।।

लट सरकाय दरस दै प्यारी, निकस्यो चंद घटा में ते ।
कोटि रमा सावित्री भवानी, निकसी चरन छटा में ते ।
पुरुषोत्तम प्रभु यह रस चाख्यो, माखन कढ़्‌यो मठा में ते ।

दरसन दै नन्द दुलारे ।।

मोर मुकुट कानन में कुंडल, होठन बंसीवारे ।
हाथ लकुट कम्मर की खोई, गौअन के रखवारे ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, जीवन प्राण हमारे ।

ढफ बाज्यो छैल मतवारे को ।।

ढफ की गरज मेरो सब घर हाल्यो, हाल्यो खंभ तिवारे को ।
ढफ की गरज मेरो सब तन हाल्यो, हाल्यो झुब्बा नारे को ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, ये रसिया नन्द द्वारे को ।

अलबेली कुँवरि महल ठाड़ी ।।

गहे पिचक रंग भरत श्याम को, उतते प्रीति भरन गाढ़ी ।
हो-हो कहि मोहन मन मोहत, मनहुँ रूप-निधि मथि काढ़ी ।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी, कर डफ गावति छवि बाढ़ी ।

बन आयो छैला होरी कौ ।।

मल्ल काछ सिंगार धर्‌यो है, फेंटा सीस मरोरी कौ ।
सोंधों भर्‌यो उपरना सोहै, माथे बिंदा रोरी कौ ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, ये रसिया या गोरी कौ ।

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ ।।

रंग डारूँ तेरे मरवट माढ़ूँ, गालन पै गुलचा मारूँ ।
एढ़ी-टेढ़ी पगिया बाँधूं, पगिया पै फुलरी पारूँ ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, तन मन धन जोवन वारूँ ।

रसिया को नार बनावो री ।।

कटि लँहगा उर माँहि कंचुकी, चूनर सीस ओढ़ावो री ।
बाँह भरा बाजूबंद सोहै, नथ बेसर पहिरावो री ।
गाल गुलाल नयन में कजरा, बेंदी भाल लगावो री ।
आरसी छल्ला औ खँगवारी, अनवट बिछुवा लावो री ।
नारायण तारी बजाय के, यशुमति निकट नचावो री ।

पनघटवा कैसे जाऊँ री ।।

पनघट जाऊँ पनघट जैहै, बिन भीजै नहिं आऊँ री ।
केसर कीच मची गैलन में, कैसे जल भर लाऊँ री ।
सुंदर स्याम गुलाल मलेंगे, लाजन मरि-मरि जाऊँ री ।
कृष्ण पिया सों मेरो मन मान्यो, का विधि नेह निभाऊँ री ।

कान्हा धरें मुकुट खेलैं होरी ।।

उतते आये कुँवर कन्हैया, इतते राधा गोरी ।
फेंट गुलाल हाथ पिचकारी, मारत भर-भर झोरी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, जुग जीवौ यह जोरी ।

यमुना तट श्याम खेलैं होरी ।।

नवल किशोर श्याम घन सुंदर, नवल बनी राधा गोरी ।
नवल सखा गये नव उमंग में, नवल रंग केसर घोरी ।
नवल सखी ललितादिक हिलमिल, नवल त्रिया गावैं होरी ।
नवल गुलाल अबीर कुमकुमा, घुमड़्यो गगन चहूँ ओरी ।
कृष्णपिया नवजोवन राधे, चिरजीयो जुग-जग जोरी ।

छैला तोय बुलाय गई नथ वारी  ।।

वा नथ वारी को लम्बो गिरारो, ऊँची अटा बैठक न्यारी ।
वा नथ वारी को नाम न जानूँ, मोय बताई तेरी घरवारी ।
कूंड़ी सोटा लै चल रसिया, खूब करै खातरदारी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, रोम-रोम तोपैं वारी ।

होरी में लाज न कर गोरी ।।

हम ब्रज के रसिया तुम गोरी, भली बनी है यह जोरी ।
जो हमसे सूधे नहिं बोलो, यार करेंगे बरजोरी ।
नारायण अब निकसि द्वार ते, छूटौ नहिं बनके भोरी ।

मैं तो मलूँगी गुलाल तेरे गालन में ।।

गाल गुलाल नैन में कजरा, बेनी गुहों तेरे बारन में ।
आज कसक सब दिन की काढ़ूँ, बेंदी दऊँ तेरे भालन में ।
चन्द्रसखी तोहि पकरि नचाऊँ, वीर बनूँ ब्रजबालन में ।

गलियन बिच धूम मचावै री ।।

ग्वालबाल लिये कुँवर कन्हैया, नित उठ भोरे हि आवै री ।
हाथ अबीर गुलाल फेंट भर, गागर रंग ढुरावै री ।
सुनि अति हि ऊधम रसिया को, जियरा बहुत डरावै री ।
बाजत ताल मृदंग बाँसुरी, गारी और सुनावै री ।
सूरदास प्रभु की छवि निरखत, नैनन हा-हा खावै री ।

सीता चरेहैं मिरग तेरी बारी ।।

कौन री बारी की बार करैगौ कौन करैगौ रखबारी ।।
लछमन देबर बार करैगौ राम करैगौ रखबारी ।।

चलो अैयो श्याम मेरे पलकन पै ।।

तू तौ रे रीझयो मेरे नवल जोवना, मैं रीझी तेरे तिलकन पै ।
तू तौ रे रीझयो मेरी लटक चाल पै, मैं रीझी तेरी अलकन पै ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, अबीर गुलाल की झलकन में ।

खेलैं नन्द दुलारो हुरियाँ री ।।

रंग महल में खेल मच्यो जहाँ, राधा लहुरि बहुरियाँ री ।
रंग गुलाल उड़ेलनि डारें, ललिता आदि छुहरियाँ री ।
वृन्दावन हित निरखि प्रशंसित, बाला रूप जुहरियाँ री ।

डोरी डालूँगी महल चढ़ अैयो रसिया ।।

पौरी में मेरो सुसर सोवत हैं, आँगन में ननदुल दुखिया ।
ऊँची अटरिया पलंग बिछ्‌यो है, तोषक गिलम गलीचा तकिया ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, वहीं तेरी तपन बुझाऊँ रसिया ।

रसिया आयौ महल खबर कीजौ ।

जब रसिया गोंड़े में आयौ, भर लोटा अरग दीजौ ।।१।।
जब रसिया दरबाजे पै आयौ, हाथ पकरि भीतर लीजौ ।।
जब रसिया महलन में आयौ, अधरामृत रस प्याय दीजौ ।।२।।
जब रसिया सेजन पै आयौ, छतियाँ सों लिपटाय लीजौ ।।
पुरुषोत्तम प्रभु कुँवर रसिक, याके मन की तपन बुझाय दीजौ ।।३।।

मेरौ पिय रसिया री सुन री सखी तेरौ दोष नहीं री ।।
नवल लाल कौ सब कोउ चाहत, कौंन-कौन के मन बसिया री ।
एकन सों नयना जोड़े, एकन सों भौंह मरोरे, एकन को मुख हसिया री ।
कृष्णजीवन लछिराम के प्रभु, माई संग डोलत पूर्ण शशिया री ।

आज यहीं रहो छैल नगरिया में ।।

घर के बलम कूँ मीसी कूसी रोटी, रसिया कूँ पूवा थरिया में ।
घर के बलम दार मोठ की, रसिया को भात छबरिया में ।
घर के बलम कूँ खाट खरैरी, रसिया कूँ पलंग अटरिया में ।
पुरुषोत्तम प्रभु छैल हमारे, तेरे खिलौना मेरी अंगिया में ।

नित आयो कर लाला तोते सब राजी ।।

सासहु राजी ससुर हू राजी, कहा करै बलमा पाजी ।
उरद की दाल गेंहूँ के फुलका, बेंगन साग चना भाजी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, रसिया सों मेरो मन राजी ।

होरी आई श्याम मेरी सुध लीजो ।।

मैं हूँ सास ननद के बस में, मेरी गलियन फेरा दीजो ।
खेलन मिस अैयो मेरे अँगना, जीवन कौ कछु रस लीजो ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, हियरा ते लिपटाय लीजो ।

मोहि दै दे दान घूँघट वारी ।।

खोल घूँघट मैं दान लेउँगो, मूठ गुलाल गालन मारी ।
फूल सुहाग हार पहराऊँ, सुन्दरी छोड़ो लाजन सारी ।
रसिक श्याम की बतियाँ सुनकै, मुदित भई है सुकुँवारी ।

मृगनैनी नारि नवल रसिया ।।

अतलस कौ याको लंहगा सोहै, झूमक सारी मन बसिया ।
अँगुरिन में मुँदरी रतनन की, बीच आरसी मन बसिया ।
बाँह भरा बाजूबंद सोहै, हिये हमेल दियै छतियाँ ।
बड़ी-बड़ी अँखियन कजरा सोहै, टेढ़ी चितवन मन बसिया ।
गोरी-गोरी बँहियन हरी-हरी चुरियाँ, बंद जंगाली मन बसिया ।
रंग महल में सेज बिछाई, लाल पलंग पचरंग तकिया ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, सबै छोड़ मैं ब्रज-बसिया ।

गौने आई एक नारि बड़ी भोरी ।।

गोरौ बदन बंक वाकी चितवनि, बड़े-बड़े नैन उमर थोरी ।
कै तो वाके चोरौ माखन, कै चलि संग खेलौ होरी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, बहुत गई रह गई थोरी ।

मत मारै छैल मेरे लग जायेगी ।।

छरी गुलाब की बहुत कटीली, गोरे अंग में चुभ जायेगी ।
स्यालू सरस कसब कौ लंहगा, खासा की अंगिया दरक जायेगी ।
भकुटी भाल तिलक केसर कौ, कजरा की रेख बिगर जायेगी ।
पुरुषोत्तम प्रभु कहत ग्वालिनी, चरनन माहि लिपट जायेगी ।

ककरेजी तेरो चीर कहाँ भीज्यौ ।।

जो तू कहत है पनियाँ भरन गई, मैं जान्यों नन्द को रीज्यौ ।
फागुन मास लाज अब कैसी, फिर पीछे बदलो लीजौ ।
गोविन्द प्रभु सों फगुवा लैके, अंकन भरि मन कौ कीजौ ।

रसिया मोय मोल मुल्याय लीजो ।।

जो रसिया मोय हलकी जानै, कांटे पै तुलवाय लीजो ।
जो रसिया मोय पतरी जानै, अपनो जोर जमाय लीजो ।
पुरुषोत्तम प्रभु कुँवर लाड़िले, तन की तपन बुझाय लीजो ।

 

जागे मेरी सास अटारी में ।।

पौरी खोल चलो मत अइयो, सोवै ननद तिवारी में ।
सुसर की रीति बड़ी है खोटी, डारै हाथ कटारी में ।
अब घनश्याम फेर तुम अैयो, आधी रात अन्ध्यारी में ।

उड़ जा रे भँवर तोहि मारूँगी ।।

उड़ि भँवरा छतियाँ पै बैठ्यो, कैसे बोझ सम्हारुँगी ।
एक भँवर सो प्रीति हमारी, दूजो नाहिं निहारुँगी ।
पुरुषोत्तम प्रभु भँवर हमारे, तन मन जोबन वारुँगी ।

ब्रज कौ दिन दूलह रंग भर्‌यो ।।

हो-हो होरी बोलत डोलत, हाथ लकुट सिर मुकुट धर्‌यो ।
गाढ़ै रंग-रंग रंग्यो ब्रज सगरो, फाग खेल को अमल पर्‌यो ।
वृन्दावन हित नित सुख बरषत, गान तान सुनि मन जु हर्‌यो ।

हरि रसिया खेलत हैं होरी ।।

मोर पखा मूठा सिर डोलत, झूमक दै नाचत गोरी ।
कनक लकुट लिये ब्रज नागरि, मुसकत है थोरी-थोरी ।
कर जेरी नग जटित श्याम के, अबीर गुलाल भरे झोरी ।
खेलत श्री ब्रजराज पौरि पै, होत परस्पर बरजोरी ।
वृन्दावन हित धाई-धाई, धरत भरत रंग दुहूँ ओरी ।

नेक मोहणों मांडन दे होरी को खिलैया ।।

जो तुम चतुर खिलार कहावत, अंगुरिन को रस लेहो । होरी..
उमडे घुमडे फिरत रावरे, सकुचत काहे हो । होरी को …
सूरदास प्रभु होरी खेलो, फगुवा हमरो देहो । होरी को …

हरि होरी रंग मचावत है ।।

जोबन रूप छक्यो मद ढोटा, तुव लखि नैन नचावत है ।
घर-घर जाय फाग के फोकट, निलजी गारी गावत है ।
आपुन भरत रंग पट बनितनि, इनकी चोट बचावत है ।
भर-भर कलश अरगजा मोहन, जुवतिन के सिर नावत है ।
दै करतारी हो-हो कहि-कहि, बाजे विविध बजावत है ।
जो कोउ गली गल्यारे निकसै, धाइ जाइ गहि लावत है ।
वृन्दावन हित नगर नंदीश्वर, आपुन भींजि भिंजावत है ।

गोरी तेरे नैना बड़े रसीले ।।

बिहँस उठत निरखत मेरो मुख, घूँघट पट सकुचीले ।
फागुन में ऐसी नहिं चहिये, ये  दिन  रंग  रंगीले    ।
ललित किशोरी गोरी खंजन, बिन अंजन कजरीले ।

होरी में बरजोरी करेंगी ।।

कहा चमकावत मोर के चंदा, बदन मांड ते हम न डरेंगी ।
कान पकरि मुख गुलचा दै हैं, अपु अधीन करि रंगन भरेंगी ।
वृन्दावन हित रूप लाड़िले, ऐंड़न रहि है अब निदरेंगी ।

ठाढ़ो रे कनुवा ब्रजवासी ।।

रंग ढारि कित भज्यो लंगरवा, लोग करैं मेरी हाँसी ।
बालपन खेलन में खोयो, गोकुल में बारामासी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखैं, जनम-जनम तिहारी दासी ।

 

फगुआ दै मोहन मतवारे, फगुआ दै ।

ब्रज की नारी गारी गावत, तुम द्वै बापन बिच वारे ।
नन्दजी गोरे जसुमति गोरी, तुम याही ते भये कारे ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखत, गोप भेष लिये अवतारे ।

फागुन में रसिया घरवारी ।।

हो-हो बोलै गलियन डोलै, गारी दै-दै मतवारी ।
लाज धरी छपरन के ऊपर, आप भये हैं अधिकारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत, ग्वाल करैं सब किलकारी ।

वृन्दावन खेल रच्यो भारी ।।

वृन्दावन की गोरी नारी, टूटे हार फटी सारी ।
ब्रज की होरी ब्रज की गारी, ब्रज की श्री राधा प्यारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु होरी खेलैं, तन मन धन सर्वस वारी ।

वृन्दावन मोहन दधि लूटी ।।

कहाँ तेरो हार कहाँ नक बेसर, कहाँ मोतिन की लर टूटी ।
जाय कहूँ यशुमति के आगे, झकझोरत मटकी फूटी ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को, सर्वस दै ग्वालिन छूटी ।

ब्रज की तोहे लाज मुकुट वारे ।।

सूर्य चन्द्र तेरो ध्यान धरत हैं, ध्यान धरत नव लख तारे ।
इंद्र ने कोप कियो ब्रज ऊपर, तब गिरिवर कर पर धारे ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखत, गाय गोप के रखवारे ।

चिरजीयौ होरी के रसिया ।।

नित ही आवो मेरे होरी खेलन, नित गारी नित ही बसिया ।
जो लो चंदा सूरज उदय रहैं, तो लौं ब्रज में तुम बसिया ।
हरीचंद इन नैन सिरायो, पीत पिछोरी कटि कसिया ।
हँसत खेलत मेरी उमर बितानी, तेरी कृपा ब्रज में बसिया ।
मोर मुकुट पीतांबर सोहै, अति रस की पगिया कसिया ।
ब्रज दूलह यह छैल अनोखो, (तेरी) हँस चितवन मेरे मन बसिया ।

दरसन दै मोरमुकुट वारे ।।

कटितट राजत सुभग काछनी, फरकत पीरे पटवारे ।
वृन्दावन में धेनु चरावैं, बाजत वंशीवट वारे । पुरुषोत्तम प्रभु के गुन गावैं, शेष सहस मुख रट हारे ।

इन गलियन काम कहा तेरो ।।

इन गलियन मेरो स्यालूरा फाटयो, मैं फारुँगी श्याम झगा तेरो ।
इन गलियन मेरो खोयो रे नगीना, मैं जोरुँगी पंच करुँगी नेरो ।
इन गलियन तू तो ऐंड़ो ही डोले, तेरी काढ़ूँगी ऐंड़ करुँगी चेरो ।
प्राण जीवन लच्छीराम के प्रभु प्यारे, हरि चरनन में मन मेरो ।

होरी खेलो तो कुँजन चलो गोरी ।।

एक ओर रहो सब ब्रजवनिता, तुम रहो राधे जू हमारी ओरी ।
चोबा चन्दन अतर अरगजा, लाल गुलाल भरे झोरी ।
ललित किशोरी प्रिया प्रीतम मिलि, खेलेंगे फाग सरा बोरी ।

ठाड़ी रह ग्वालिन मदमाती ।।

यह अवसर होरी को हैरी, हम तुम खेलैं संग साती ।
भूलि गयो घर गैल हमारी, लै लगाय अपनी छाती ।
पुरुषोत्तम प्रभु हँसत हँसावत, ब्रजबनिता सब गुन गाती ।

मैं तो चौंक उठी डफ बाजन सों ।।

सोवत ही अपने आँगन में, जागी गारी गाजन सों ।
देखूँ तो द्वारे मोहन ठाड़े, सजे छैल सब छाजन सों ।
पुरुषोत्तम मेरो नाम लै लै तिन, गारी दई बिन लाजन सों ।

देखि सखी वृषभानु किशोरी ।।

निज प्रीतम को रूप निहारति, जा विधि चंद्र चकोरी ।
जो लों फाग खेलन को निकसी, बीच भई चित की चोरी ।
नारायण अटके दृग छबि में, भूलि गई सुधि होरी ।

आज हरि डगर मचाई धूम ।।

जो ब्रज नारि गई जल भरवे, बीचहिं ते आई घूम ।
अति सुंदर नव जोबन भोरी, गज गति चलति है झूम ।
नारायण जो तू बच आवै, लेहूँ तेरे पग चूम ।

दरसन दै चंदबदन गोरी ।।

यह ओसर नहिं सकुच करन कौ, फागुन में छैल करैं जोरी ।
मुख निकासि घूँघट पट में ते, ललित कपोल मलैं रोरी ।
हीरा सखी हित ब्रज में बसिके, लाज के काज न तज होरी ।

रसिया आयो द्वार खोल गोरी ।।

फागुन मास न लाज करन को, बाहर निकसि खेलि होरी ।
बार-बार हम कहत न मानत, दुरि क्यों रहि है भवन ओरी ।
हीरा सखी हित सुन नव नागरी, विनय करूँ तेरी कर जोरी ।

मोहन हो-हो होरी ।।

कान्हि हमारे आँगन गारी, दै आयो सो कोरी ।
अब क्यों दुरी बैठे जसुदा ढिंग, निकसो कुंजबिहारी ।
उमंगि-उमंगि आयी गोकुल की, सकल मही धन वारी ।
तबहि लला ललकारि निकारी, रूप सुधा की प्यासी ।
लपटि गई घनश्याम लालसों, चमकि-चमकि चपलासी ।
काजर दै बनाई भरुवा कह, हँस-हँस ब्रज की नारी ।
कहि रसखान एक गारी पै, सौ आदर बलिहारी ।

चलो खेलौ मोहन संग होरी ।।

केसर रंग भरी पिचकारी, अबीर गुलालन की झोरी ।
ललिता सुन बिन कहे तू मेरे, जइयो मत उनकी ओरी ।
हीरा सखी हित आज श्याम कूँ, पकर नचावो नव ओरी ।

प्यारे खेलूँगी तुम संग होरी ।

बड़े खिलार कहावत हौ हरि, हम तो हैं अति ही भोरी ।
खबर परैगी आज फाग में, कैसी तिहारी बरजोरी ।
हीरा सखी हित कहत कठिन है, जानो मति माखन चोरी ।

 

ब्रज मोहन छैल नवल रसिया ।।

आठो पहर फाग नित होरी, राखत राधा मन बसिया ।
कर लिये ताल गुलाल फेंट में, नव नागरि उर को बसिया ।
हीरा सखी हित अचल रहौ यह, रसिक जनन दृग फँसिया ।

इकली कहाँ जाति आज गोरी ।।

मिली बहुत दिन में औचक ही, खेलूँ अब तो संग होरी ।
हिय बिच और बिचार करै जिन, मेरी तेरी बनी युगल जोरी ।
हीरा सखी हित फाग मनावो, होई तबै सुख उर ओरी ।

को खेलै श्याम तुम ते होरी ।।

बातन सूंगढ़ टूटत नाहिन, छोड़ो मग करिबो जोरी ।
लग्यो मास फागुन जा दिन ते, भूलि रहे माखन चोरी ।
हीरा सखी हित कहत साँवरे, जानों मति मोंकूँ भोरी ।

इक बात हमारी सुन गोरी ।।

पट लगाइ मंदिर कित बैठी, बाहिर आ खेलैं होरी ।
फागुन में यह धरम अली री, या में समझि कहा चोरी ।
हीरा सखी हित मानि सिखि किन, प्रीति नई जिन दे तोरी ।

डफ धर दे यार गई पर की ।।

खेलत-खेलत देह पिरानी, और मलीन भई तरकी ।
सैन अनंग सकल सकुचानी, कुम्हलानी कमल कली सरकी ।
सूरदास प्रभु रसिक शिरोमणि, शरणागत राधावर की ।

खेलत- खेलत सबरी भींज गई तरकी ।।

हार सिंगार मेरो सबै भिजोयो, नक बसेर की मुर उरझी ।
ब्रज दूलह यह छैल अनोखो, बलिहारी राधावर की ।
सूरदास प्रभु है रस की छवि, होरी खेलै रंगीली गली की ।

रस लै रै रसिया फाग को ।।

अब तोहि नन्द के खबर परैगी, या होरी के अनुराग कौ ।
बाहर लोग चबाव करत हैं, या तेरी मेरी लाग को ।
दया सखी मोहन जब आवै, तब मानूँगी भाग को ।

हम चाकर राधारानी के ।।

ठाकुर श्रीनंदनंदन के, वृषभानुलली ठकुरानी के ।
निर्भय रहत वदत नहीं काहू, डर नहिं डरत भवानी के ।
हरिश्चन्द्र नित रहत दिवाने, सूरत अजब निवानी के ।

रस लै तो द्वार पर्‌यो रहियो ।।

जो तू रसिया रस को भूखो, मार धार सब की सहियो ।
जइयो ना कहुँ इन द्वारन ते, लली चरनन को सुख पइयो ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, प्रेम सुधा कौ रस चखियो ।

मतवारी ग्वालिन अँचरा सँभार ।।

तब ही ते कछु अधिक भई है, धरत धरनि पर भार ।
तनसुख सारी गुजराती लहँगो, अरु अँगिया पर हार ।
कृष्णजीवन लच्छीराम के प्रभु प्यारे, छवि पर हो बलिहार ।

फगुना जाय मत रे होरी कौ खिलैया यार ।।
जो फागुना तू जयगो रे, मरूँगी जहर विष खाय ।
फगुना फूल गुलाब कौ रे, धूप लगे कुम्हलाय ।
रसिया कौ घर सामई, गोरी की लाल किवार ।
लचक-लचक गोरी जल भरे, मल-मल रसिया न्हाय ।

कैसी होरी बिरज में आय लगी ।।

कान्हा होरी को आयो मोर मुकुट धर, द्वार पै धूमस होन लगी ।
कोई एक गावै डफहि बजावै, मेरी छतियन धक-धक होन लगी ।
होरी में आग लगी न लगी, मेरे जियरा में नेह की आग लगी ।
होरी खेलन मैं तो बाहर आई, मेरे गाल गुलाल की मूठ लगी ।
मैं तो भाजी मोय पकरी और बोल्यो, मेरी तोते गोरी लगन लगी ।
कैसी होरी बरजोरी मैं तो खीझी जोराजोरी, मेरे हाथ पीताम्बर की फैंट लगी ।
पीत पट जो छुड़ायो संग घर घुस आयो, पैंया पर वाकी हा-हा होन लगी ।

फगुना जाय मत रे होरी कौ खिलैया यार ।।
फगुना आयो मेरे पाहुने, याको कहा लऊँ आदर भाव ।
काहे की पातर करूँ, कौन परोसन हार ।
हियरा की पातर करूँ,  दोउ नैन परोसन हार ।
काहे को गूँजा करूँ, काहे को भरूँ कसार ।
गालन को गूँजा करूँ, होठन को भरूँ कसार ।
काहे को लड़ुआ करूँ, काहे की रांधूँ खीर ।
जोबन को लड़ुआ करूँ, रस की रांधूँ खीर ।
न्यौत जिमाऊँ बालमा, मेरी सगी ननदी कौ बीर ।

चली चल यों ही बके बजमारो ये तो होरी को छैल मतवारो ।।

जब ते लगी बसंत पंचमी, रोकत गैल गिरारो ।
एक दिना मोहे अंक भर लीनी, हँस-हँस घूँघट टारो ।
जो कहुँ होती सखी कोउ संग में, तो कछु देती सहारो ।
ऊबट बाट फँसी गहवर में, कैसे होय किनारो ।
तू भोरी छल बल नहिं जाने, है जोबन तेरो बारो ।
नागरिया जो तोय देखेगो, नेक टरेगो न टारो  ।।

साँवरे मोहि रंग में बोरी ।।

बैंया पकर के मेरी गागर, छीन के सिर ते ढोरी ।
रंग में लालन रंगमगी कीनी, डारी गुलाल की झोरी ।
गावन लग्यो मुख ते होरी ।।

आज अचानक मिल्यो री डगर में, तब निरख्यो नन्द कौ री ।
भरि भुज लै मोहि ब्रजजीवन ने, पकरी करि बरजो री ।
माल मोतियन की तोरी ।।

मर्यादा मेरी कछु न राखी, कही इक बात ठगोरी ।
तब उनको मैं आँख दिखाई, मत जानों मोहि भोरी ।
जानूँ तेरे चित की चोरी ।।

मेरो जोर कछु नाय चाल्यो, कंचुकी की कस तोरी ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को, रसिया ने रंग में बोरी ।
गई मैं नन्द की पौरी ।।

 

फिर गाई रस की सोई गारी ।

मदन बसीकर सिद्धमन्त्र-सी श्रवण परी धुनि आज हारी ।।
फेर ओट ढफ की करि चितई चितवनि प्रेम भरीई प्यारी ।।
हरीचंद हिय लगी चटपटी व्याकुल भई लाज की मारी ।।

ब्रज में हरि होरी मचाई ।।

इततें आईं कुँवरि राधिका, उतते कुँवर कन्हाई ।
हिलमिल फाग परस्पर खेलत, शोभा बरनी न जाई ।
नन्द घर बजत बधाई ।।

बाजत ताल मृदंग बांसुरी, बीन ढफ शहनाई ।
उड़त गुलाल लाल भये बादर, रह्यो सकल ब्रज छाई ।
मानो मघवा झर लाई ।।

लै-लै रंग कनक पिचकाई, सन्मुख सबै चलाई ।
डारत रंग अंग सब भीजे, झुकि-झुकि चाँचरि गाई ।
परस्पर लोग लुगाई ।।

राधे सैन दई सखियन को, झुण्ड-झुण्ड घिरि आईं ।
लपट-झपट लइ श्यामसुंदर सों,बरबस पकरि लै आईं ।
लाल को नाच नचाई ।।

छीन लई मुरली पीताम्बर, सिर चूनरी उढ़ाई ।
बेंदी भाल दृगन बिच अंजन, नक बेसर पहराई ।
मानों नई नारि बनाई ।।

मुसकत हौं मुख मोरि-मोरि कै, कहाँ गई चतुराई ।
कहाँ गये तेरे पिता नन्द जू, कहाँ यशोदा माई ।
तुम्हें अब लेहिं छुड़ाई ।।

फगुवा दिये बिन जान न पैहौ, कोटि करो चतुराई ।
लैहैं काढ़ि कसक सब दिन की, तुम चितचोर कन्हाई ।
बहुतै दधि माखन खाई ।।

कृष्ण रंग फगुवा जु भाँवतो, दैके बहुत रिझाई ।
श्यामा-श्याम युगल जोरी पै, सूरदास बलि जाई ।
प्रीति उर रही समाई ।।

होरी हो ब्रजराज दुलारे ।।

अब क्यों जाय छिपे जननी ढिंग, द्वै  बापन के वारे ।
कै तो निकस के होरी खेलो, कै कहो मुख ते हारे ।
जोर  कर  आगे हमारे ।।

बहुत दिनन सों तुम मनमोहन, फाग हि फाग पुकारे ।
आज देखियो खेल फाग कौ, रंग की उड़त फुहारे ।
चले जहाँ कुमकुम न्यारे ।।

निपट अनीति उठाई तुमने, रोकत गैल गिरारे ।
नारायण अब खबर परेगी, नेक निकस आय द्वारे ।
सूरत अपनी दिखला रे ।।

 

कैसा है यह देश निगोरा, जग होरी ब्रज होरा ।।
मैं यमुना जल भरन जात ही, देख रूप मेरा गोरा ।
मोते कहै नेक चल कुंजन, तनक-तनक से छोरा ।
परे नैनन में डोरा ।।

मन मेरो हर्‌यो नन्द के ने सजनी, चलत लगावत चोरा ।
कहा बूढ़े कहा लोग लुगाई, एक ते एक ठिठोरा ।
न मान्यो एक निहोरा ।।

जियरा देख डरात री सजनी, आयो लाज सरम को ओरा ।
कहे रसखान सिखाय सखन को, सब मेरो अंग टटोरा ।।

छैल रंग डार गयो मेरी बीर ।।

भींज गयो मेरो अतलस रोटा, हरित कंचुकी चीर ।
डारै कुमकुम ताकि कुचन पै, ऐसो निपट बेपीर ।
ललित किशोरी कर बरजोरी, मलत गुलाल अबीर ।

करुँगी कपोलन लाल मेरी अंगिया न छूवो ।।
यह अंगिया नहिं धनुष जनक कौ, छुवत टूट्यो तत्काल ।
नहिं अंगिया गौतम की नारी, छुवत उड़ी नन्दलाल ।
कहा विलोकत भृकुटी कुटिल कर, नहिं ये पूतना ख्याल ।
यह अंगिया काली मत समझो, जाय नाथ्यौ जाय पाताल ।
गिरिवर धार भयो गिरिधारी, नहिं जानो ब्रजबाल ।
जावो जी खेलो सखन के संग मिलि, गौवन के प्रतिपाल ।
इतनी सुन मुसकाय साँवरे, लीनो अबीर गुलाल ।
सूरदास प्रभु निरखि छिरकि अंग, सखियन कियो निहाल ।

रसिया को मोहल्ला न्यारो री रसिया को ।।
ऊँचे पे नंदगाँव बसत है, जहाँ राजत वंशीवारो री ।
बरसाने याकी भई है सगाई, यह राधा को घरवारो री ।
बाबा वृषभानु को नगद जमाई, श्री दामा याको सारो री ।
पुरुषोत्तम प्रभु कुँवर लाड़ले, यह यशोमति नन्द दुलारो री ।

ननदी दरवाजे पर आय अड़ो याहे होरी को चसको ।
हा-हा खाय खेल मेरे संग, अरी यह फागुन दिन दस को ।
नजर बचाय अंक भरि लीन्ही, याने मिस कर उर मसको ।
सूरदास यह तो रसिक शिरोमणि, अरी यह भोगी या रस को ।

छैला मेरी गागर उतार ए जी लहजो दै चढ़ती ज्वानी को ।।
हम तो आये दूर ते हैं, कोई रंचक पानी प्याय ।
हमरो पानी विष भर्‌यो है, पीवै सो मर जाय ।
जो तेरो पानी विष भर्‌यो है, कैसे पीवै बलम भरतार ।
छोरा हमरो तो घर को गारुड़ी है, पीवे लहर उतार ।

चहुँदिसि नदियाँ रंग सों भरीं हो, डगर निकसन को नाय रही ।।

मैं दधि बेचन जात वृंदावन चखि, लेत गुपाल गलिन में दही ।
बरज रही बरज्यौ नहिं मानै, प्यारी ऐसो ढीठ यही ।।
कहत ग्वालिनी सुनि री यशोदा मै तो, बैयाँ पकरि के करूँगी सही ।
चन्द्रसखी के रसिक विहारी, मेरी हँसि-हँसि बाँह गही ।।

बरजो यशोदा जी कान्हा ।।

मैं जमुना जल भरन जात ही, मारग निकस्यो आना ।
बरजत ही मेरी गागर फोरी, ले अबीर मुसकाना ।
सखी सब दैहैं ताना ।।

मेरो लाल पलना में झूले, बालक है नादाना ।
ये क्या जाने रस की बतियाँ, क्या जाने खेल जहाँना ।
कहाँ तुम भूली ग्याना ।।

तुम साँची तुमरो सुत साँचो, हमहीं करत बहाना । सूरदास ब्रजवासिन त्यागे, ब्रज से अनत न जाना ।
करो अपना मनमाना ।।

 

रंग डारत नन्द को लाल ।।

ऐसो भयो सखि सुघर खिलारी, मारग रोक ठाड़ो बनवारी ।
देखो मेरी आली, ऐसौं निठुर वो बाल ।
मारत तान कनक पिचकारी, गेरत दृगन अबीर अपारी ।
मोसों करे बरजोरी, मलै मुख में गुलाल ।
परसै सकल अंग गिरधारी, वासुदेव मर्याद बिसारी ।
ब्रजवल्लभ सों हारी, सब ब्रज की बाल ।

आय गई री होरी खेलन हारी ।।

नारो झुब्बादार कमर में, लंहगा अंगिया चूनर सारी ।
ज्वानी छाय रही है यापै, फूल गुलाब से गालन वारी । रसिया भँवर बन्यो मँडरावै, बच रही है चम्पे की डारी ।
होरी में ये हाथ परी है, मारै भर-भर रंग पिचकारी ।

रस कूँ कूर कहा पहिचानै  ।।

चढ़ गयी महल अटा भई ठाढ़ी, तक-तक गोंदा तानै ।
रसिया फूल बन्यो गेंदा को, जाय गुबरैटी में सानै ।
पुरुषोत्तम याय नीचे लै ले, तब मेरो मनुवा मानै ।

म्हारे होरी को त्यौहार ननदुल बैर परी ।।

होरी गावत धूम मचावत, एरी मोहन आये हैं हमारे द्वार ।
मोपै रह्यो नहिं जात मंदिर में, वाके सुन ढफ की धधकार ।
देख्यो मैं चाहत नंदनंदन को, एरी वो तो भेरत कुटिल किवांर ।
जा दिन ते गौने हम आईं, वाको वाई दिन को व्यवहार ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, एरी मैं तो मिलिहौं गलभुज डार ।

लाल रसमातो खेलै होरी ।।

वो तो होरी के मिस आवै, मेरी गलियन धूम मचावै ।
करै बरजोरी ।।

वो तो केशर माँट ढुरावै, मो पै भर-भर लोटा ढारै ।
करे सराबोरी ।।

वो तो ठाढ़ो कदम की छैंया, मेरी पकर मरोरी गोरी बैयाँ ।
झटक लर तोरी ।।

वो तो चन्द्रसखी को प्यारो, जशुदा कौ राजदुलारो ।
मटुकिया फोरी ।।

मनमोहन री रिझवार एरी तेरे नैन सलोने ।।
तू अलबेली आन गाँव की, अब ही आई है गौने री ।
मनमोहन तेरे द्वारे ठाढ़े, तू धसि बैठी है कोने री ।
होरी के ढफ बाजन लागे, तू गहि बैठी मौने री ।
दया सखी या ब्रज में बसके, नेम निभायो कौने री ।

हो बिहारी सब रंग बोर दई ।।

सुई सी सारी कसूमल अंगिया, अब ही मोल लई ।
देखेगी मेरी सास ननदिया, होरी खेलत नई ।
चले जाव पिया कुंजबिहारी, जो कछु भई सो भई ।

आज श्याम मग धूम मचाई, धूम मचाई करत ढिठाई ।
बिन रंग डारे देत नहिं निकसन, मैं तेरी सों देखि कै आई ।
तू कहूँ भूल कै मति उत जैयो, जाने कहा वह करे लंगराई ।
नारायण होरी के दिनन में, अपने ही हाथ है अपनी बड़ाई ।

चौंकि परी गोरी होरी में श्याम अचानक बाँह गही री ।।
सम्हरि छुड़ाय रिसाय चढ़ी भ्रू, अनषि अधर कछु बात कही री ।
चितै-चितै हँसिकै बसिकै, कसिकै भुज में रस रास लही री ।
श्रीकुंजलाल हित बाल जाल छवि, ख्याल रसालहिं देख रही री ।

मनमोहन आवनहार होरी खेलूँगी ।।

उबटन मज्जन कर लियो सजनी, नव सत साज समार ।
हाथन मेंहदी पांय महावर, कजरा लियो लगाय ।
बेसर को मोती अति सुंदर, सोंधे बींधे बार ।
भामर सो फिरबोई करत है, यह तेरो रिझवार ।
दया सखी घनश्याम लाल कौ, करि राख्यो हियहार ।

राधावर खेलत होरी ।।

नंदगाँव के ग्वाल इतै-उत, बरसाने की गोरी ।
डफ करताल बजावत गावत, केसर कुमकुम घोरी ।
परस्पर रंग में बोरी ।।

गावत गारी गँवार मनो, नव नागरि जोबन जोरी ।
नन्द को लाल बड़ो रसिया है, हम ते करत कछु जोरी ।
फागुन में कौन की जोरी ।।

दसहु दिस में गुलाल घुमड़ रह्यो, काहू न लख न पर्‌यो री ।
औचक धाय चली चन्द्रावलि, ललितादिक सब दोरी ।
गह्यो कुँवर बरजोरी ।।

मोर मुकुट वनमाल मुरलिका, पीताम्बर लियो छोरी ।
भामिनि वेष बनाय कहत हैं, नंदराय की छोरी ।
बनी छवि काम करोरी ।।

दे दे तारी नचावत ग्वालिन, अपनी-अपनी ओरी ।
वा दिन की सुधि भूले लल्ला, यमुना तट चीर हरो री ।
आज सखी दाव परो री ।।

कृष्ण रंग फगुवा जो भामतो, देकर बहुत निहोरी ।
ह्वै अधीन वृषभानु सुता के, बिनती करे करजोरी ।
देउ अपनों कर छोरी ।।

फाग लगौ जब ते मोरी आली बाँके सामलिया ने धूम मचाई ।।
अटकत निडर नन्द को नटखट, लोक लाज कुल कान गँवाई ।
बैयाँ मृदुल पकरि झक झोरत, माँगत दान जोबन मुसकाई ।
खेंचि दुकूल मलत मुख रोरी, होरी के मिस अंक लगाई ।
पैज परी उत वासुदेव सों, सास ननद इत करत लराई ।
अरे हेला वे डफ बाजें पियारी के, वा श्री वृषभानुदुलारी के, कीरतिजा रूप उजारी के, धुनि सुनि उर चौंप बढ़ी भारी ।।
रंग रंगीली अलीं संग लिये फूलि रही छबि फुलबारी ।
अरे हेला छाइ रह्यौ अनुराग रंग गावैं मैंन मद सनी रुचिर मारी ।
दया सखी घनश्याम लाल कह्यौ (नर्म सखन सो) चलो जाइ देखैं (अपने) प्राणन की निज है जियारी ।

 

छैला ये आज रंग में बोरो री एरी सखी लाग्यौ हमारो दाँव ।।

फेंट पकर याके गुलचा मारो, पैयाँ परै तब छोरो ।
हरे बाँस की बाँसुरिया याकी, लैके तोर मरोरो ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, याही ते यारी जोरो ।

रंग बरसै रे गुलाल बरसै, राधारानी हमारी पै रंग बरसै ।।
रंग बरसै रे गुलाल बरसै, मोहन प्यारे हमारे पै रंग बरसै ।।
(अरी रंग बरसै कहुं दामिनी बरसै, और बरसै कस्तूरी)

होरी खेलन दै मेरी बीर वीर मेरी ननदी ।।
ढफ मुरली ऊधम सुन मेरो, जियरा धरे न धीर ।
जान दीजिये यह रस लीजै, मेरी नेक करो न पीर ।
किशोरीदास ब्रजचन्द्र बिहारी, सुख बिहरत जमुना तीर ।

छैला ये आज रंग में बोरो री एरी सखी लग्यौ हमारो दाव ।।
केशर घोर याके अंग लगावौ, कारे ते करो गोरो ।
जिनहिं भुज गिरिराज उठायौ, तिन भुज पकरि मरोरौ ।
आनंद घन याहे पकरि नचावौ, हा-हा खाय तो छोरौ ।

तेरी होरी खेलन में टोना मैं तो नई आई श्याम सलोना ।

तैने कैसो खेल रचायो, मानो दुलहा ब्याहन आयो ।
जो खेलै सो होय बराती, यहीं ब्याह यहाँ गौना ।
चौबा चन्दन अतर अरगजा, लिये अबीर भर दोना ।
काहे बैठी है ओट मुड़ेली, मैं तो नई-नई नार नवेली ।
अब तुम हमसों खेलो होरी, फिकर काहू की करो ना ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, होनी होय सो होना ।

होरी में गोरी मेरे लग जाएगी मत मारै नैन कटार ।।

भले ही रंग तू डार लै, पर घूँघट नेक उघार ।
प्रेम सों होरी खेल लै अरी, सुन अलबेली नार ।
हियरा को घायल करै तेरे, बिछुवन की झनकार ।
हिल-मिल होरी खेल ले, आज कर मोहन सों प्यार ।
ब्रज कौ राजा साँवरो कोई, रानी राधे कुमार ।
फेंटन झोरी गुलाल ह्वै, ह्वाँ मच रह्यो धूँआधार ।
फगुवा लेउ मन भाँवतो, तुम सगरी ब्रज की नार ।
मोहन फगुवा बाँटते, कोइ कृष्णदास बलिहार ।

पानीरा भरन कैसे जाऊँ मेरे राम पनघट पै ठाढ़े श्याम ॥

सज मतवारो साँवरो रे, रसवादी है याको सबरो गाम ।
गावैं बजावैं प्रेम सों रे, मुरली में लै-लै मेरो नाम ।
राह रोक ठाढ़ो भयो रे, मारग में निरखै मेरी जाँघ ।
जुगल रूप छवि छैल की रे, मन अटक्यो है सागर के माँझ ।

 

अरी नाय मानै रे नाय मानै रे,
अनोखो छैल लंगर नाय मानै रे ॥

मेरे पिछवारे ते आवै रे, अरी मोय दै-दै सैन बुलावै रे ।
मेरे अगवारे ते आवै रे, अरी मेरे अँगना धूम मचावै रे ।
मोय औचक नींद न आवै रे, अरी सुपने में आय जगावै रे ।
होरी खेलन के मिस आवै रे, अरी वो भर-भर गड़ुवा ढारै रे ।
मैं कैसे करूँ कित जैये रे, अरी रस सागर बीच लुभैये रे ।

मदमातो फागुन जाए तनक गोरी रसिया सों बतराय लीजौ ॥

यह जोबन दिन चार को है, दो-दो नैना ते नैना लड़ाय लीजौ ।
सास ननद को डर मत करियो, घूँघट में बतराय लीजौ ।
रसिया कौ रस भर्‌यो ही डोलै, छतियाँ सौ लिपटाय लीजौ ।
फगुना में केला लै आयो, चुपचाप अँधेरे में खाय लीजौ ।
कृष्णजीवन लच्छीराम के प्रभु सों, तन की तपन बुझाय लीजौ ।

इक चंचल नारी अटा चढ़के मेरे मारी दुबारा धर के ।।

काहे की याने चोट चलाई, काहे को बल करके ।
नयन बान की चोट चलाई, जोबन को बल करके ।
काहे को याने कोप कर्‌यो है, काहे को मन करके ।
प्रम रूप को कोप कियो है, मिलवे को मन करके ।
चन्द्रसखी कौ नेह जुर्‌यो है, श्यामसुंदर सों अरके ।

डफ बाजे हैं राधारानी के ।

श्यामसुन्दर की प्राण-पोषिका, सुख बर्द्धनि सुखदानी के ।।
उड़त गुलाल लाल भये बादर, रमनी रूप गुमानी के ।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी, वृन्दावन रजधानी के ।।

स्याबास रंग में बोरी अंगिया गरक रही ।।
चोबा चन्दन अतर अरगजा, केसर गागर घोरी ।
लै पिचकारी सन्मुख मारी, भींज गई सब चोली ।
छतियाँ हाथ लगावत धरकी, चुरिया मेरी करकी ।
सास बुरी घर ननद हठीली, देखैं सखी बगर की ।
लै रोरी गोरी मुख माँड़्यो, होरी नये बगर की ।
लाल जाऊँ बलिहार तिहारी, बात बनी घर-घर की ।

गोरे अंग गुवालिनी गोकुल गाम की ।।
लहर-लहर जोबना करै हो, थहर-थहर करै देह ।
छतियाँ धुकर-पुकर करै, बाको नयो रसिक सों नेह ।
कुबरा कौ पानी भरै, गोरी नवि-नवि लेजू लेय ।
घूँघट दाबै दांत सों ये, गर्व न उत्तर देय ।
पहरे नौतन चूनरी, लावन लई सकोरि ।
अरग थरग सिर गागर, वह चितै चली मुख मोरि ।
चाल चलै गज हंस की, ऊँची नीची दीठि ।
ओढ़न  के मिस मुरक के, नेक हरि ही दिखावै पीठि ।
ठमकि चलै मुरि-मुरि हँसै, गोपी फिर-फिर ठाढ़ी होय ।
घायल-सी घुमत फिरै, याको मर्म न जानै कोय ।
तिलक बन्यौ अंगिया बनी, वाकी पायल की झनकार ।
बड़े बगर ते नीकसी, ह्वां श्याम खरे दरबार ।

ये कैसो ऊधम गार याको पीतांबर छोरौ री ।।
आज हमारो दाव बन्यो है, देखो कैसो आज सज्यो है ।
ठकुराई लेओ निकार याको रंगन में बोरो री ।।
सब मिल पकरी नन्द को लाला, मगन भई सब ब्रज की बाला ।
हँस देवे गुलचा मार राख्यो हरि करि कै चेरो री ।।

हम आईं बरसाने वारी निकस छैल नन्दगैंयाँ रे ।।
ऊबट बाट नचायो बहुत दिन, अब क्यों नार नवैयाँ रे ।
कै तो निकस के होरी खेलो, कै परो प्यारी जू के पैंयाँ रे ।
यह कह नागर घेर लई सब, अबीर गुलाल उड़ैंयाँ रे ।

गोविन्द यदुबीर मेरे मन बस्यो है गोविंदा ।।
वृंदाविपिन सुहावनो, कोंहके जहँ मोर ।
कोयल बोले शब्द भरी, सुन नन्द किशोर ।
साँवरो धेनु चरावे, यमुना के तीर ।
मुख ते वेणु बजावे, हलधर यदुवीर ।
आपन बैठ कदम पै, ग्वाला दिये हैं सिखाय ।
दोनाई दोना लै गये, दधि दई है लुटाय ।
राधे अटरिया चढ़ गई, खिरकिन दे ओट ।
साँवरे हाथ मुरलिया, सब दल की ओट ।

रंगरेज गमार अंगिया रंग नाय जानै ।।
याही अंगिया कु ही लिख दै, याही में लिख दै बाज ।
याही में मोरा लिख दै, कोंहके दिन रात ।।
याही अंगिया में कुआ लिख दे, याही में लिख दे बाग ।
याही में माली लिख दे,  सींचे दिन रात ।।
याही अंगिया में पलंग लिख दे, याही में लिख दे मोय ।
याही में बलमा लिख दै, जब ढोरुँगी ब्यार ।
याही अंगिया चौपर लिख दै, याही में लिख दे गोर ।
याही में कांसे लिख दै, खेलैं दिन रात ।।

इक चंचल देखी हो प्यारे मार गई सैनन में ।।
स्यालू सरस रेसमी लहँगा, हीरा लगे लामिन में ।
शीशफूल माथे पै बेंदा, सुरमा लगे आँखिन में ।
गोरे हाथ रचाय लई मेंहदी, बरहा परे हाथन में ।
हार हमेल गुदी खँगवारो, डूब रही सब धन में ।
वन के से टेंट कदम के से ढोटा, फूल रही जोबन में ।
गजनिन मार गई सैनन में ।।

 

जान दे रे तेरे पांय परत हौं रे कन्हैया ।।
टूट गये हार छूट गये अँचरा, भींजि गई अंगिया रे दैया ।
या मग मोहि न कर बरजोरी, हैं गोकुल के लोग चबैया ।
नागरिया धनि रीत तिहारी, धनि यह खेल धनि तुम खिलवैया ।

मदन मोहन की यार भोरी गूजरी ।।

मदन मोहन याको भोरो भारो, गूजर असल छिनार ।
लहँगा याको घूम घुमारो, चूनर बूँटेदार ।
मदनमोहन बिन और न भावै, वो याकी रिझवार ।

मत रोके मेरी गैल लड़कवा जान दै ।।
अब कोई कैसे निकसैंगीं, नित ही मारग रोकै ।
या ब्रज में बस ढीठ भये हो, माँगत दान दही कौ ।
जाय कहूँ जसुमति के आगे, तेरो कान्ह लड़ेरो ।

लटकाय आई केस भँमर कारे ।।

कौन पै पहरी तैनें हरी-हरी चुरियाँ, कौन पै किये है नैन कारे ।।
श्याम पै पहरी तैनैं हरी-हरी चुरियाँ, रसिया पै किये है नैन कारे ।।

देखूँ तेरो हाथ दरद कैसो ।।

तू गोरी जोबन मदमाती, दरद नांय ऐसो वेसो ।
नस-नस को मैं दरद निकासूँ, मैं नाय वैद ऐसो वेसो ।
दया सखी फागुन के महीना, वैद मिलो मन को जैसो ।

रंग में रंग दई बाँह पकर के लाजन मर गई होरी में ।।
इकली भाज दई होरी में हुरमत लाज गई होरी में ।
चटक दार चोली में सरवट पर गई होरी में ।
चूनर रंग बोरी होरी में पिचकारी मारी होरी में ।
ह्वै के श्याम निशंक अंक भुज भर लई होरी में ।
गाल गुलाल मल्यो होरी में मोतिन लर तोरी होरी में ।
लोक लाज खूंटी पै कान्हा धर दइ होरी में ।
बरजोरी कीन्ही होरी में ऎसी बुरी भई होरी में ।
घासी राम पीर सब तन की हर लइ होरी में ।

होरी खेलन आयो श्याम आज याहे रंग में बोरो री ।।
कोरे-कोरे कलश मँगावो, वामे केशर घोरो री ।
लोक लाज कुल की मर्यादा, फागुन में तोरो री ।
मुख ते केशर मलो करो, कारे ते गोरो री ।
हाथ जोर के करे बीनती, याकी तनियाँ तोरो री ।
सब सखियाँ जुर मिलके, याकूँ मग में घेरो री ।
रतन जटित पिचकारी, याके सन्मुख छोरो री ।
हरे बांस की बांसुरिया, याहि तोर मरोरो री ।
चन्द्रसखी यों कहे आज, बन आयो भोरो री ।

मैं तो सोय रही सपने में मोपै रंग डार्‌यो नन्दलाल ।।
सपने में श्याम मेरे घर आये, ग्वालबाल कोउ संग ना लाये ।
टटोरन लाग्यो मेरे अंग, पौढ़ पलका पै मेरे संग ।
करन लाग्यो जोबन सों जंग, पिचकई मारी भर-भर  रंग ।
पिचकारी के लगत ही, मो मन उठी तरंग ।
मानो मिसरी कंद की, घोंट पी लई भंग ।
घोंट पी लई भंग गाल कर दिये गुलालन लाल ।।
हँसि-हँसि के मोहि कंठ लगाई, मानो कुछ मोय दौलत पाई ।
खुले सपने में मेरे भाग, मनों मेरी गई तपस्या जाग ।
हँस खूब मनाय रही फाग, रसीली जुरी हमारी लाग ।
हँस-हँस फाग मनाय रही, चरण पलोटत जाय ।
धन्य-धन्य या रहन कूँ, फिर ऐसी नाय पाय ।
फिर ऐसी नाय पाय भई सपने में मालामाल ।।
इतने में खुल गये मेरे नयना, देखूँ तो कछु लेन न देना ।
परी पलका पै मैं पछतात, मैं दोनों मलती रह गई हाथ ।
जो सपनो देख्यो मैंने रात, अधूरी रह गई मन की बात ।
मन की मन में रह गई, हौन लग्यो परभात ।
बजत गजर के फजर ही, तीन ढाक के पात ।
तीन ढाक के पात रही कंगालन की कंगाल ।।

छैला मेरी जोट मिलाय लीजो ।।

जो रसिया मोय गुट्टी जानो, फीता ते नपवाय लीजो ।
जो रसिया मोय हलकी जानो, काँटे पै तुलवाय लीजो ।
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण को, मन की हौंस बुझाय लीजो ।

कैसे जाय छुप्यो कोने में मेरी चोली पै रंग डार ।
बहुत दिनन ते तुम मनमोहन, फाग ही फाग पुकार ।
आज देखियो खेल फाग को, रंग की उड़त फुहार ।
बहुत अनीति उठाई तुमने, रोकत गैल गिरार ।
आज नन्द के खबर परैगी, झोरी भरी गुलाल ।
बाजे सभी बजाओ सजनी, ढफ मृदंग करताल ।
माधुर-माधुर बंसी बाजे, मुहचंग और सितार ।
नारायण न बहुत इतराओ, आवो भवन के द्वार ।
बहुत ही नाच नचायो हमको, तुम चित चोर मुरार ।

अरी वह नन्द महर को छोहरा बरज्यो नहिं माने ।।
प्रेम लपेटी अटपटी और, मोहि सुनावे दोहरा ।
कैसे के जाऊँ दुहावन गैया, आय अघोरे गोहरा ।
नख शिख रंग बोरे और तोरे, मेरे गरे को डोरा ।
गारी दे दे भाव जनावै, और उपजावे मोहरा ।
गोविन्द प्रभु बलबीर बिहारी, प्यारी राधा को पति मनोहरा ।

होरी तोते न खेलूँ श्याम रसिया ।।

घूँघट में पिचकारी मारे बेंदी की चटक बिगारै रसिया ।
नैनन में पिचकारी मारे कजरा की रेख बिगारै रसिया ।
होठन में पिचकारी मारै नथली की गूंज बिगारै रसिया ।
छातियन में पिचकारी मारै चोली की चटक बिगारै रसिया ।
घुटुमन में पिचकारी मारै लंहगा की घूम बिगारै रसिया ।

 

सगरी रात श्याम सों खेलूँ चन्दा छिप मत जैयो रे ।।
फागुन कौ अवसर मनमानो, होरी को है खेल सुहानो ।
अलबेलो साजन मस्तानो ।

अरे नन्द के छैल आज कहुँ, भाज न जैयो रे ।।
चोट दऊँगी मैं भी ऐसो, भूल जायगो ऐसो वेसो ।
बन के डोले छैला कैसो ।

पतरी सी मत जानै छलिया, भज मत जैयो रे ।।
अड़के होरी मैं खेलूँगी, लठिया मार ढाल तोरुँगी ।
गुलचन गाल लाल कर दूँगी  ।

गली साँकरी छेड़-छाड़ को फल तू पैयो रे ।।

आज खेलूँगी तुझसे होरी तैने चूनर भिगोई है मेरी ।।
तू है नंदगाँव का ग्वाला, मैं हूँ बरसाने की छोरी ।
तू है नामी लुटेरा माखन का, आज मरजादा मैंने भी तोरी ।
रोका रस्ते को साँकरी खोरी, आज तुझको बनाऊँगी गोरी ।
तेरी आँखों में लगाऊँ सुरमा, रेख कजरा बनाऊँगी थोरी ।
खोल पीताम्बर अपनी कमर से, लँहगा पहनाऊँगी कसके डोरी ।
बातों ही बातों में पकड़ जो लिया, सिर पै रंग की है गागर ढोरी ।
लाल की पाग रंग में है बोरी, है उड़ाई गुलाल की झो़री ।

फाग खेलन कैसे जाऊँ सखी री हरि हाथन पिचकारी रहत है ।।

सबकी चुनरिया कुसुम रंग बोरी, मेरी चुनरिया गुलनारी रहत है ।
कोई सखी गावत कोई बजावत, हमको तो सुरत तिहारी रहत है ।
कहत है कासिम अपनी सखी सों, सैंया की सुरत मतवारी रहत है ।

 

आँखों में रंग डार पिया कहाँ जायेगा ।

पकड़ी मैंने फेंट भाग नहीं पायेगा ।।

बहुत दिनों तक चोरी करके, माखन खाया नीयत भरके ।
भरे हैं पोट गुलाल मार तू खायेगा ।।

टेढ़ी चाल छुड़ाऊँगी मैं, सीधा आज बनाऊँगी मैं ।
दूँगी  गुलचा गाल मजा तब आयेगा ।।

कहाँ गये तेरे सब ग्वाला, करते सब माखन का घुटाला ।
तुमको दूँगी बाँध न कोई छुड़ाएगा ।।

 

काजर वारी गोरी ग्वार, या साँवरिया की लगवारि ।।
निसिदिन रहत प्रेम रंग भीनी, हरि रसिया सों याने यारी कीनी ।
मदन गोपाल जानि रिझवार, नाना विधि के करे सिंगार ।।१।।
मिलन काज रहे अंग अगोछे, सरस सुगंधनि तेल तिलौछें ।
अंजन नाहिं भटू यह दीये, स्याम रंग नैनन में लियें ।।२।।
गायन को यशुमति गृह आवें, कृष्ण चरित्रहिं गाय सुनावें ।
सुंदर श्याम सुनें ढिंग आय,  चितवत ही चितवत रहि जाय ।।३।।
रामराय प्रभु यों समुझावें, भगवान तू नीके गुन गावें ।
लखि घनश्याम कियौ निरधार, यह लगवारिन वह लगवार ।।४।।

होरी में कैसे बचेगो ये जोबन तेरो ।।

जो कहूँ दृष्टि परैगी श्याम की, संग लै तोय नचैगो ।
अब की फागुन तेरेई बगर में, होरी रंग मचेगो ।
छैल बड़े छल चितवन चोरे, नैनन बीच डसेगो ।
गोकुल कृष्ण की लगन यही है, तेरे ही भवन बसेगो ।

श्याम के मैं अंक लगूँगी कलंक लगै तो लगौ री ।।
अंक लगे बिन पल-छिन न रहूँगी, सिर पर तोप दगे तो दगो री ।
लाज तजूँ ग्रह-काज तजूँगी, घर सास लड़े तो लड़े री ।
रसिक प्रीतम गुरुजन सिर ऊपर, धार परै तो परो री ।

बहुत बड़े हैं उत्पात नन्दलाल के,
भाज गयो श्याम मोपे आज रंग डार के ।।

परसों की बात कहूँ, सुनो नन्द रानी ।
मैं तो गई थी भरवै, जमुना को पानी ।
चारों तरफ से घेर्‌यो संग ग्वाल बाल के ।।१।।
पकर जो पाऊँ वाको, ऐसो मैं हाल करूँ ।
दे दे गुलचा वाके, दोउ गाल लाल करूँ ।
मोसों बरजोरी करे बीच ब्रजबाल के ।।२।।
और एक बात कहूँ, सुनो मेरी मैया ।
पाय अकेली श्याम, लागे मेरी पैयाँ ।
कहत न आवै याके घात हैं कुचाल के ।।३।।
एक दिना मिल्यो, साँकरी गली में ।
बरबस लै गयो, गह्वर वन में ।
झटक-झटक तोरी लरी मोती माल के ।।४।।

हेली ये डफ बाजै छैला के, मनमोहन रसिया नागर के ।
वा जुलमी औगुन गारे के, धुनि सुनि जिय अति अकुलाय गई ।।

कहा कीजैरी आवत उमगि हियो निधि ज्यों अब कापै रोक्यौ जाइ दइ ।
उर गुरु जन की लाज दहति उर धरि नहिं सकिये देहरी पाइ ।
दया सखी अब होइ सु हूजौ मिलों घनश्यामहि धाइ ।

जुग-जुग जियो होरी खेलन हारी ।।

एसो आशीष फले रसिया को, हू जो पामन भारी ।
नोमे महीना तोपे छोरा होगो, धरियो नाम हजारी ।
या गोरी पे दो दो हू जो, एक मुकदम एक पटवारी ।
जो रसिया मोपे छोरा होयगो, दउँगी पात तिहारी ।
पूरी ऊपर बूरो दूँगी, और आलू की तरकारी ।
ये होरी रहे अजर अमर, गोरी रसिया पे बलिहारी ।

छैला मन बस में करैगी ।।

लै लै लाल गुलाल मलेंगे, गोल कपोल सहैगी ।
तक तक तेरे उंचे कुचन पर, कुमकुम मार मचैगी ।
मौज सब तन की लुटैगी ।।

तो चूनरि औ पीताम्बर की, पिय संग गांठ जुरैगी ।
नागरीदास बीच सखियन के, मोहन संग नचैगी ।
स्वाद रस को समझेगी ।।

 

री ठाड़ो नंददुलारो जाही पै डारयो क्यों न रंग ।।
गिरि को उठाय भये गिरिधारी, इंद्र मान कियो भंग ।
री यह ब्रज रखवारो जाही पै डारयो क्यों न रंग ।।
गौतम नारी अहल्या तारी, कुब्जा को कियो संग ।
री प्रहलाद उबारो जाही पै डार्‌यो क्यों न रंग ।।
द्रुपद सुता को चीर अक्षय कियो उघरन न दियो अंग ।
री यह द्वारका वारो जाही पै डार्‌यो क्यों न रंग ।।
पुरुषोतम प्रभु की छवि निरखै केसर घोरो रंग ।
री मनमोहन प्यारो जाही पै डार्‌यो क्यों न रंग ।।

रंग बिन कैसे होरी खेलै री या साँवरिया के संग ।
कोरे-कोरे कलस मँगाये, विन में घोरो रंग ।
भर पिचकारी संमुख मारी, मेरी चोली है गई तंग कोरे ।।
ढोलक झांझ मजीरा बाजै, सारंगी मृदंग ।
सांवरिया की बंसी बाजै, राधा जू के संग ।।
लंहगा रंग मेरी चूनर रंग दइ, रंग दियो सारो अंग ।
श्याम सुंदर की कारी कामर, चढ़े न दूजो रंग ।।
राधे सब सखियन सों बोली, घोर लेवो बहु रंग ।
देखैं कैसे साँवरिया पै, चढ़े न दूजो रंग ।।
भरि पिचकारी श्याम पै मारी, चढ़्यो न कोई रंग ।
मोहन ब्रज गोपिन सों बोले, रंग भयो बदरंग ।।

होरी न खेलूँ तोते रसिया ।।

तन को कारो मन कों कारो, घूँघट कैसे खोलूँ ।
बहियाँ पकर कुञ्ज लै जावै, तेरे संग न चलूँ ।
होरी मिस यारी जोरै, मन को भेद न खोलूँ ।

जब सों धोखो दै के गयो श्याम संग नांय खेली होरी ।।
मथुरा जनम लियो हरिराई, गोकुल जाय चराई गाई,
लूट-लूट दधि खाय करी याने माखन की चोरी ।
ऊधो जी तुमकूँ समझाऊँ, एक दिना की बात बताऊँ,
जमुना न्हायवे गई घेर लई गोपन की छोरी ।
अब तो निठुर भये बनवारी, गोपिन की सुध नाय सँवारी,
कुब्जा के संग रमे छोड़ दई राधा-सी गोरी ।

या ब्रज में कैसी धूम  मचाई ।।

इतते आई कुँवरि राधिका, उतते कुँवर कन्हाई ।
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह छवि बरनी न जाई ।
बाजत ताल मृदंग झांज ढफ, मंजीरा शहनाई ।
उड़त गुलाल लाल भये बादर, केसर कीच मचाई ।
पकरो री पकरो श्याम सुंदर को, यह अब जान न पाई ।
छीन लेओ मुरली पीताम्बर, सिर पर चूनर उड़ाई ।
बेंदी भाल नयन बिच कजरा, नख बेसर पहराई ।
कहाँ गये तेरे पिता नन्द जू, कहाँ गई यशुमति माई ।
कहाँ गये तेरे सखा संग के, कहाँ गये बलदाई ।
धन गोकुल धनि-धनि वृन्दावन, धन यमुना यदुराई ।
राधा-कृष्ण युगल जोरी पर, नंददास बलि जाई ।

श्यामा श्याम सों होरी खेलत आज नई ।।
नंदनंदन को राधे कीनो माधव आप भई,
सखा सखी भये सखी सखा भये जसुमति भवन गई ।
बाजत ताल मृदंग झांझ ढफ नाचत थेई-थेई,
गोरे श्याम सांवरी राधे यह मूरति चितई ।
पलटयो रूप देख जसुमति की सुध बुध बिसर गई,
सूर श्याम को बदन विलोकत उघर गई कलई ।

जानी-जानी तेरी लगन लगी है ।।

मौहे सोंह है नन्द के घर की मोहन रंग रंगी है ।
नैन उनींदे लगत सोहने सबरी रात जगी है ।
यह प्रताप होरी को गोरी कुल की कानि भगी है ।

कन्हैया रंग तोपै डारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।।
पहली पिचकारी तेरे माथे मारै,

बिंदिया की सुरंग बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
दूजी पिचकारी तेरे अँखियन मारै,

कजरा की रेख बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
तीजी पिचकारी तेरे मुख पै मारै,

नथली की गूंज बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
चोथी पिचकारी तेरे छतियन मारै,

चोली की चटक बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
पांची पिचकारी तेरे पायन मारै,

लंहगा कौ घूम बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
छटी पिचकारी तेरे पायन मारै,

बिछुवन कौ  घोर बिगारैगो सखि घूँघट काहे खोलै ।
साती पिचकारी तेरे सबरांई मारै,

जोबन कौ फूल बिगारैगो सखि घूंघट काहे खोलै ।

कान्हा ते कैसे खेलूँगी मैं होरी ।।

सबरे ब्रज में धूम मचाई लै मेरो नाम बकै होरी ।
नई-नई मैं आयी नवेली कबहुं न खेली ब्रज होरी ।
होरी के हुरियारे छैला जान न देवै कोई गोरी ।
कैसे बचेगी या होरी में पीहर की चूनर कोरी ।
पोटन भरे गुलाल छैल सब लै लै माटन रंग घोरी ।
ऐसी होरी जरे निगोरी बाहर भीतर रंग बोरी ।
होरी में बरजोरी करके सबकी लाज मटकी फोरी ।
रसियन के छल बल नहिं जानूँ दांव पेच में मैं भोरी ।

कान्हा पिचकारी मत मारै चूनर रंग बिरंगी होय ।
चूनर नई हमारी प्यारे हे मनमोहन वंशी वारे ।
इतनी सुन लै नन्द दुलारे ।।

पूछेगी वो सास हमारी कहाँ ते लई भिजोय ।।१।।
सबको ढंग भयो मतवारौ, दुःख दायी है फागुन वारो,
कुलवंतिन कौ औगुन गारौ ।

मारग मेरौ अब मत रोकै मैं समझाऊँ तोय ।।२।।
बहु विधि विनय करै सुकुमारी, आड़े ठाड़े हैं गिरिधारी,
बोले मीठे वचन बिहारी ।

होरी खेल अरी मन भाई फागुन के दिन दोय ।।३।।
छांड दई रंग की पिचकारी, हँस-हँस के रसिया बनवारी,
भीज गई सबरी ब्रजनारी,

ग्वालिन ने हरि को पीताम्बर छोर्‌यो मद में खोय ।।४।।

पकरो-पकरो होरी खेलन ते नंदलाला भाग्यो जाय ।।
पहले याने चोट चलाई, तान दई भर के पिचकारी,
भर के फेंट गुलाल उड़ाई,

अब भाग्यो है पीछो करके याको लेओ घिराय ।।१।।
बड़ो खिलार बन्यो नन्दगैंयां, नित-नित ऊधम नित लंगरैयां,
छोड़ो मत चाहे परे ये पैंयां,

छल बलिया है बहुत दिना ते हाथ परयो है आय ।।२।।
सब मिल पकर लई गिरिधारी जुर आई सब ब्रज की नारी,
बंसी छीन लई है प्यारी,

बंसी रही बजाय राधिका सब मिल श्याम नचाय ।।३।।

 

गोरी चूनर कुसुम रंगाय लै री ।।

अंगिया लाल कसुमी लंहगा काजर नैन लगाय लै री ।
सीस फूल बेंदी माथे पै चोटी फूल गुंथाय लै री ।
गोरे गालन झुमका बेसर मोती नाक सजाय लै री ।
हाथन कंगन और आरसी चूरी  हाथ चढ़ाय लै री ।
तोसी न नागरी मोसों न रसिया जिय की हौस मिटाय लै री ।
पांय पकरि तेरी वीनती करत हौं हंस के अंक लगाय लै री ।

ढफ धरि दै यार गई पर की ।।

खेलत फाग थकित भई ग्वालिन मेंहदी मलिन भई करकी ।
क्षेत्र छोडि भाग्यो है रति पति मुरकी अनी कुसुम शर की ।
पुरुषोतम या होरी खेल में जीत भई राधावर की ।

होरी खेल न जाने रे कन्हैया मेरी चूनर भीजैगी दैया ।
अबही मोल लइ मनमोहन सास लरै घर सैंया ।
नगर चबाव करै नरनारी तेरे परूँ मैं पैंया ।
ब्रजदुलह होरी खेलि न जानै बहुत करै लरकैंया ।

बसंती रंग में बोर दै रे चुनरिया मेरे छोरा रंगरेजवा ।।
मेरी चुनरिया मेरे पिया की पगरिया एकइ रंग में झकोरि दै रे ।
अब के फागुन मेरे पिया घर आवै सौतिन कौ मुख मोरि दै रे ।
विष्णुदास मुंह मांगे दाम लै औ चरण कमल चित चोरि दै रे ।

मतले मेरी लाज दुपैरी में ।

आस पास कोई घर नाहीं मै हूँ अकेली हवेली में ।।१।।
जाय पुकारूँ राजा कंसके आगे मेरौ तेरौ न्याव कचैरी में ।।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै तू छैला अलबेली मैं ।।२।।

आज मोहि नटवा की होरी खिलाई नट नागर के मन भाई
इत मथुरा उत गोकुल नगरी बीच में जमुना बहाई ।।
भरि पिचकारी सन्मुख मारी नेक लाज नाय आई ।।१।।
मैं जमुना जल भरन जात ही मारग रोक्यो है आई
सिर पै ते मेरी गगरी पटकी बैयाँ पकरि घुमाई ।।२।।
वंशी वट पर वंशी बजाई लै लै नाम बुलाई
वृन्दावन में रास रच्यो है दै दै तारि नचाई ।।३।।
पिचकारिन कौ बांस गाढ़ि कै तापै मोय चढाई
ब्रजनिधि रसिया मानत नाहीं सौर कला खवाई ।।४।।

मैं दधि बेचन जात वृन्दावन चखी लेत गुपाल गलिन में दही ।।
बरज चहुँ दिसि नदिया रंग सों भरी हो, डगर निकसन कों नाय रही,
बरज्यो नहिं मानै प्यारी ऐसो ढीठ यही ।
कहत ग्वालिनी सुनि री जसोदा, मैं तो बैंया पकरि के करूँगी सही,
चन्द्रसखी के रसिक बिहारी मेरी हँसि-हँसि बाँह गही ।

तेरी होरी खेलन में टोना मैं तो नई आई श्याम सलोना ।।

कर मेरो पकरि करैया मोरी या होरी में कछु होना ।
रात-रात भर होरी गावै नाचै मटक हँसौ ना ।
चन्द्रसखी फागुन के महीना नाय मानै नंदजू कौ छौना ।

तेरो गोरो बदन और जुबना नयौ होरी में कैसे बचैगो ।।
एक डर लागत है वा दिन को जा दिन रंग रचैगो ।
चोवा चन्दन अतर अरगजा तोपे अबीर गुलाल परैगो ।
कहत ग्वालिन सुनि री सहेली तेरे अंगना में श्याम नचैगो ।

मेरे नैनन में डारयो है गुलाल सजनी,

मलत-मलत हुई अँखियाँ लाल ।।

मचि रह्यो फागु भानु पौरी पै खेलत मदन गुपाल ।
चोवा चन्दन अतर अरगजा छिरकत पिया नन्दलाल ।
ग्वालबाल सब सखा संग लै घेरी लई ब्रजबाल ।
अबीर गुलाल फैंट भरि लीने तकि मारे करि ख्याल ।
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छवि चिरजीवो दोउ लाल ।

मोहन मुदरी लै गयो री मेरी आछी ननद सटकारी री ननदिया ।।

हाथन की मुदरी लइ मेरो और गरे हार ।
वास न वसिये नन्द के रे मेरी कोई  नाना सुनै पुकार ।
लै गयो तो लै जान दै जाने मेरी बलाय ।
पीहर जाऊं बाप के रे और लाऊँ गढ़वाय ।
दया सखि घनश्याम लाल कौ बाढ़यो है रंग अपार ।
चरन कमल के आसरे रे तन-मन-धन बलिहार ।

एरी होरी कों रसिया रस लोभी निकसन देय न बाट ।।
भर-भर रंग सबै तन ढारे यह ऊधमी विराट ।
कर डफ लै कछु ऐसौ गावै सुनि जिय होत उचार ।
वृन्दावन हित रूप माँगि सुख लिख्यो विधि श्याम लिलाट ।

पानीरा भरन कैसे जाऊँ री मोपै माँगै जुबनवा कौ दान ।।

ढपै बजावै गारी गावै लै लै कै मेरो नाम ।
या ब्रज की कछु उलटी रीति है मेरो बाहर परत न पाम ।
या माधव ते कैसे बचूँगी रसवादी है गोकुल गाम ।

अनौखो छैल मेरे आवै रे ।।

धमकि अटा चढ़ी आवै रे एरि मोय ओचक आय जगावै रे ।
सूनी बाखर आवै रे एरि मोय दे दे सैन बुलावै रे ।
केसरि रंग बनावै रे एरि मोपै भरि-भरि गड़ुवा ढारै रे ।
ठोर कहाँ जहँ जैये रे  रस सागर बीच लुभैये  रे ।

खेलौ बलदाऊ जी सों होरी ।।

वे तो कहिये ब्रज के राजा फगुवा लैन चलो री ।
फागुन में हिय उमगि भरयो है मन भावै सोई करौ री ।
लाज सब दूर धरो री ।।

चोवा लाओ चन्दन लाओ अबीर बनाओ भर झोरी ।
बैंया पकरि के याहि नचाओ (याकि) मुख ते लगाय देओ रोरी ।
हाल ऐसो ही करो री ।।

कहत मुकुंद बार नाय कीजै पकरि लेउ बरजोरी ।
कोई काजर कोई बेंदी लगाओ (याके) सेंदुर मांग भरो री ।
नील पर धूरि धरो री ।।

 

क्या करै अनोखे बान रसिया होरी में ।।
एक मार रंग की पिचकारी, दूजै नैन कटार ।
एक मार मीठी मुसकनकी, दूजै अलबेलो सिंगार ।
एक मार मीठी बंसी की, दूजै नूपुर की झनकार ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छबि, रंग रंगीलो सरकार ।

पर्‌यो री या है होरी कौ चसकौ,
बारी ननदी दरबज्जे पै आन अर्‌यौ
।।

हा-हा सी ननदी होरी खेलन दै, फागुन दिन दस कौ ।
गैल घाट मग रोकत डोलै, नांय मानें नन्द कौ ।
आनन्द घन रसिया रस लोभी, बदलौ लऊँ परकौ ।।

कोउ भलो बुरो जिन मानो रंगन रंग होरी है ।
मोहन के मन मोहन कौ श्री वृषभानु किशोरी है ।
होरी में कहा-कहा कहियत है यामे कहा कछु चोरी है ।
कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु सों जो कछु कहौं सो  थोरी है ।

बावरी बन आई तोय होरी कौन खिलाई ।।
नैनन में चकडोर फिरै तेरे घूँघट में चतुराई ।
सास कहै मेरी वारी सी बहुरिया अंगिया कहाँ दरकाई ।
चंचल चपल मयंद गयन्दनि घूमत-घूमत आई ।
हार डोर की सुधि नाय सजनी किन लालन बिरमाई ।
सास कौ पूत ननदिया कौ वीरा जिन मेरी छोर उड़ाई ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि हरषि-हरषि गुण गाई ।

मनमोहन की रिझवार प्यारी तेरे नैन सलोने ।।
तू अलबेली आन गांव की अब ही आई गोने ।
सौंह दिवाय कहौं (नेहर) पीहर की पग जिन धरौ अगौने ।
आज होरी गोरी तेरेइ बगर में केते कौतिक होने ।
साँची सखि सुनि नंदनंदन की रूप रंग गुण औने ।
जब लगि परस कुटिल भृकुटी तट मटकत टावक टोने ।
अब तू साधि सखि घर ते में नेम धर्म व्रत मौने ।
चन्द्रसखी या गोकुल बसिके नेम निभायो कौने ।

आय गयौ-३ रे होरी में कन्हैया ।।

वा दिन भाज लियो होरी में, लठामार ते नन्दगैया ।।
एक दिना मेरो घूँघट खोल्यो, और करी याने लंगरैया ।।
पनघट पे ये नित हि अटके, गगरी फौरे लुढकैया ।।

सानूदा होरी खेलदा नहीं जानदा ।।

लंगर लंगर लंगराई करि कै, साड़ा मुख पर चादा भरि ।
पिचकारी देता गारी टेड़ी करि तानेदा ।
चोबा चन्दन और अरगजा लै मुख ते सानेदा ।
हाय दई कैसी भई नहीं आनंद घन मानैदा ।

साँवरो अजहूँ नाय आयौ ।।

छाड़ दई मधुवनी श्याम ने मधुपुरी जाय के बसायौ ।
दासी जाय करी पटरानी गोपीनाथ नाम लजायौ ।
कंत कुब्जा कौ कहायौ ।।१।।

लै पतिया छतिया कौ जरावै ऊधौ संदेशा लायौ ।
कहा कहुं यह मित्र विश्वासी कैसो संदेशौ लायौ ।
हलाहल घोरि पिलायौ ।।२।।

एक दिना बात सखी री जसुदा हाथ बँधायौ ।
जो न होती हम ब्रज ग्वालिन हम नेई आनि छुड़ायौ ।
लाल द्वै बापन जायौ ।।३।।

भूषण वसन उतारि सखी री अंग विभूति रमायौ ।
हार उतार पहिर लिये मुद्रा सींगी नाद बजायौ ।
फाग में अलख जगायौ ।।४।।

धन मथुरा धनि-धनि वृन्दावन धनि जहाँ रास रचायौ ।
ब्रज प्रताप यह अटल बनी रहौ करत आप मन भायौ ।
श्याम चेरी ने बिरमायौ ।।५।।

 

प्यारे हम नहिं खेलत होरी ।।

हो हो करत अरत ही आवत दिखरावत बरजोरी ।।
नए खिलार लाड़िले मुख पर लै लपटावत रोरी ।।
रूप रसिकई जानि परी अब देखत है सब गोरी ।।

सब दिन की अब कसक निकारों,पकर लियौ सब लिपटैयाँ ।। होरी में ।।

घेर लियो सबने मनमोहन, श्याम गये अब पकरिया ।। होरी में…
गुलचा गाल दिए मन भाये, बरज रही कीरति मैया ।। होरी में …
छल बल ते नहिं छूट सको तुम, परो किशोरी के पैयां ।। होरी में…
छूटे पांय पकर गिरधारी, ठुमका दे रहे नचकैयाँ ।। होरी में…

सब की चोट निशाने पै ।।

नैन बान चहुँ धाते छूटैं चन्द्रिका मिली इक बाने पै ।
लाखन हू की भीर जुरी है अति लोचन सरसाने पै ।
या नागर ते सब ब्रज अटक्यो सो अटक्यो बरसाने पै ।

प्यारी बिहारी लाल सों रस होरी खेलैं ।
लटकीली गज चाल सों, बुका बंदन मेलैं ।।
जोबन जोर उमंग सों रति रंगहि रेलैं ।
लै पिचकी कर कमलन सों पिय तन पर पेलैं ।
अति निसंक लच लंक सों भरि अंक सके लैं ।
गहि गाढ़ी आह्लादिनी आनंद अलबेलैं ।
अतर ले तन तार करी नव तिया नवेलैं ।
सग बग कीनी ढारी कै सीसी जु फुलेलैं ।
चहल पहल भई महल के या बगर बगेलैं ।
श्री हरि प्रिया जे धन्य हैं ते यह रस झेलैं ।

रसिया केसर की बूंदन में अंगिया किन रंग दीनी रे ।।

देखेंगी मेरी सास ननदिया यह कहा कीनी रे ।
चोवा चन्दन और अरगजा सोंधे भीनी रे ।
रसिक प्रीतम अभिराम श्याम सो भुज भरि भेंटी रे ।

गोरी होरी तो खेल घूँघटवारी घूँघट वारी बिछुवा वारी ।।
मत छेड़ श्याम गिरवर धारी
गिरवर धारी ओ बनवारी ।।
रंग भरी ये होरी आयी,भागन ते इकली पाई ।
अरी हम जोरेंगे तोते यारी, गोरी ……… ।।
तेरी होरी बारह मासी, हमरी तो है जावे फांसी ।
सब देखेंगे ब्रज नर-नारी, मत छेड़ श्याम गिरवर धारी ……… ।।
बात बनाय रही है प्यारी, होरी को त्यौहार मना री ।
रसियन को ये सुखकारी, गोरी होरी तो खेल घूँघट वारी ……. ।।
देख गैल ते हट बजमारे, रोके मत ओ रूप बावरे ।
भंवरा सी प्रीति तेरी कारी, मत छेड़ श्याम गिरवर धारी ……… ।।
चम्पकली सी नार नवेली, होरी खेलेंगे अलबेली ।
प्यारे कों रस प्यारी प्यारी, गोरी होरी खेल घूँघट वारी ……….. ।।
काहे पाँय परै रसदानी, मानमंदिर की टेव पुरानी ।
मत ब्यार करै तोपै वारी, मत छेड़ श्याम गिरवर धारी ……….. ।।

बह जायगी काजर धार न मोपै रंग डारो ।।
सास सुनैगी मूसर मारै, नई बहुरिया बादर फारै ।
वो तो गारी दैगी हजार, न मोपै रंग डारो ।।
ननद लड़ै औ लड़ै जिठानी कहाँ भई यह ऐंचातानी ।
मेरी चूनर डारी फार न मोपै रंग डारो ।।
कह्यो गूजरी श्याम सुंदर सों फिर जीतूँगी काउ जतन सों  ।
मोपै होरी रही उधार न मोपै रंग डारो ।।

मुद्दई मेरौ जेठ गिरारे कौ ।

अगल बगल मेरौ घूँघट निरखै, नथ निरखै भलकारे कौ ।
गैल चलत मेरी पिड़रीय निरखै, निरखै झुब्बा नारे कौ ।
‘ब्रज दूलह’ यह छैल अनौखौ, जसुमति नन्द दुलारे कौ ।

गोरी-गोरी गुजरिया भोरी सी प्यारी तैं मोहे नन्दलाल ।।
खेलन में हो-हो जु मन्त्र पढ़ डारयौ तै जु गुलाल ।
(तेरी)सोंधे सनी अंगिया उरजन पै औ कटि लँहगा लाल ।
उघर जात कबहुँक चलगत में जेहर ढिंग ऐड़ी लाल ।
(तू) सकल त्रियन में यों राजत है ज्यों मुक्तन में लाल ।
न्याय चतुर्भुज कौ मन मोह्यौ अधर सुधा रस लाल ।

होरी खेलन की चौंप हो निस नींद न आवै ।।

श्याम सलोना रूप रिझौना मुरली टेर सुनावै – हो निस नींद…  ।
मेरे बगर मंडरावै वाते खेलूंगी उघर बनावै – हो निस नींद…  ।
कहा करैगी सास ननदिया सब त्यौहार मनावै – हो निस नींद…  ।
आनंद घन गुलाल घुमड़न में करि हार हिये में रखावै – हो…  ।

गोहन पर्‌यो मेरे साँवरो सलोनों ढोटा गोहन पर्‌यो ।।

याकी घाली मेरी आली कहौ कित जाउँ ।
बांसुरी में (गावे वह )—(गारी गावे ) लै लै मेरे नाउँ ।
सांवरे कमल नैन आगे नेकु आई ।
लाजन के मारे (मोपै) कहूँ गयो न जाई ।
जौ हौं चितऊँ आड़ो दै दै चीर ।
सैननी में कहै चल कुञ्ज कुटीर ।
अंगना में ठाड़ी हू अटा चढ़ि आवै ।
मुकुट की छहियाँ मेरे पाइनि छुवावै ।
हित घनश्याम मिलोगी धाई ।
सांवरे सलोने बिन रह्यो न जाई ।

होरी को बन्यो खिलार हरि कौ सब सखियो घेरो री ।।
बहुत बार याने मटकी फोरी, दीख‌ै जहाँ साँकरी खोरी ।
यानै बहुतै कियो बिगार याकी बंसी मिल चोरौ री ।।
याद करो जब चीर चुरायो, ऊपर चढ़ि गूँठा दिखरायो ।
ये कैसो ऊधम गार याको पीताम्बर छोरौ री  ।।
आज हमारो दांव बन्यो है, देखो कैसो आज सज्यो है ।
ठकुराई लेओ निकार याको रंगन में बोरो री ।।
सब मिल पकरी नन्द को लाला, मगन भई सब ब्रज की बाला ।
हँस दैवे गुलचा मार राख्यो हरि करि कै चेरो री ।।

रूप दुरै किहि भांति री, तू कहै क्यों ताहि उपाय (सजनी) ।।

घूँघट में न छिपात सखी मेरे गोरे बदन की कान्ति ।।
बरज रही बरज्यो ना मानै कौन दई संजोग री ।।
मैं तरुणी या ब्रज के सबरे भये बावरे लोग री ।।
मोहन गोहन लाग्योइ डोलै प्रगट करत अनुराग री ।।
अब नागर डफ बाजन लागै सिर पर आयो फाग री ।।

गोरी तेरे नैना बड़े रसीले ।।

विहंसि उठत निरखि मेरो मुख घूँघट पट सकुचीले (रसीले) ।
फागुन में ऎसी ना चहिये ये दिन रंग रंगीले ।
ललित किशोरी गोरी खंजन बिन अंजन कजरीले ।

खेल रहे रंग होरी उनके दौऊ नैना खेली रहे रंग होरी ।
श्याम पुतरी श्याम भई, ज्योत भई राधे भोरी ।
बाल समान अबीर उड़ावत, भर पलकन की झोरी ।

बैंयां झकझोरी मोरी रे, खेलिये न ऎसी होरी श्याम ।।
मानो जू छबीले छैला खेलिये ना ऐसी होरी ।
परसत कुच मोहे जान लंगर भोरी ।। खेलिये न ऐसी होरी …..
रंग पिचकारी मारी चूनरी बिगारी सारी ।
चल रे अनारी काहे मलत कपोल रोरी ।। खेलिये न ऎसी होरी …..
भरिये न अंकवारी दूँगी  मैं प्यारे गारी ।
सरस विहारी तोसों हारी कहूँ कर जोरी ।। खेलिये न ऐसी होरी ।।

कान्हा निलजी गारी जिन दै री ।।

अबहूँ हारी हाहा तोसों, नेक लाज मुख लै रे ।
अब या गली बहुरि नहिं अैहौं, सौं बाबा की है रे ।
नागरिया ब्रजवधू भिगोई, होरी मांझ सबेरे ।

राधा मोहन खेलत फाग (री) ।।

रंग गुलाल वसन तन सनि रहे, हिये सनि रहे अनुरागऊ ।
सखिनु समाज चहुँ दिसि राजत, फूल्यो सोभा कौ बाग ।
वृन्दावन हित रूप छके रस, मदन केलि उर लाग री ।

ये गोरी अनमोल गोरी याते न बोल ।।

जावक पाँय चुटलि गौने की तुम चाहत कछु और होने का ।
जाउं बलिहार परे को डोल-डोल देख, याते न बोल ।।
होरी खेलन कीजो तेरे मन में जोबन जोर भरो तेरे तन में ।
तो आओ सखियन के टोल-टोल देख, याते न बोल ।।

 

होरी को खिलार कर लिये डफहि बजावै होरी की ।।
पान भरे मुख चमकत चौका अरु देये बैंदा रोरी की ।
रातो लंहगा तनसुख सारी कहा कहौ छवि या गोरी की ।
कठिन कुचन पर उकसती अंगिया आहि मनो रति की जोरी की ।
चोवा की बेंदी तुईयन पर अरु अचरा की ढिंग थोरी की ।
नीवी खुभी जू रही है नाभि पर अरु कसि गांठि दई डोरी की ।
भरती न डरति आंख आंजती है करत दुहाई किसोरी की ।
नन्दलाल कौ गारि देती है हंसि ग्वालिन सों गठ जोरी की ।
जोवन रूप बनी सु बनी मनो है वृषभानु गोप ओरी की ।
हो हो हो कहि सुघर राय प्रभु नैन सैन दै चित चोरी की ।

रंगभरी होरी खिलाय ले ओ होरी के रसिया ।।
होरी के रसिया प्यारे नन्द जू के छैया, फागुन खूब मनाय ले ।
फगुना में मैं नथनी लूँगी, नथनी में फूलना डलाय दे ।
शीशा जरी आरसी लूँगी, मुख अपनों दिखराय दे ।
१६ लर की लऊँ कौंधनी, रौना हू लटकाय दे ।
पायल लूँगी बिछुवा लूँगी, बिछुवा में घुँघरू जड़ाय दे ।

होरी आज  खिलाय ले ओ रंगभरे रसिया   ।।
रंग भरे रसिया जसुदा जी के छैया अपनी हौस बुझाय ले ।
रंग भरी पिचकारी लै के रंग की धार चलाय ले ।
चोवा चन्दन अगर कुमकुमा  कस्तूरी लिपटाय ले ।
रंग बिरंग गुलाल की पोटै बादर सी घुमड़ाय ले ।
जो कछु होवै तेरे मन में आपनो जोर जमाय ले ।
नैनन ते मुसकाय सलोने हँस-हँस भरे लगाय ले ।

निलजी गारी जिन दै रे अरे कान्हा ।।
अबहूँ हारी हा हा तोसों नेक लाज मुख लै रे ।
अब या गली बहुरि नहि अइहौं सौं बाबा की  है ।
नागरिया ब्रजवधू  भिगोई होरी माँझ सबेरे ।

चाहे रुठै सब संसार खेलूँगी होरी श्याम ते ।।
चाहे सास रुठै चाहे ससुरो रूठे, चाहे रूठ जाय भरतार ।
चाहे ननद चाहे नंदेऊ रूठै, चाहे गारी मिलै हजार ।
चाहे जेठ रूठे चाहे जिठनी रूठे, चाहे बकै सबै ब्रजनार ।
चाहे सबरो गांव चबाव करै, ये तो है गई फरिया फार ।
चाहे नगर निकासो है जाय मेरो, चाहे दीजो मोपै भार ।
भर होरी में मिलै श्याम सों, छोडूं रंग की धार ।

मनमोहन नन्द डुठोना ।।

होरी में आयो बरसानो, सुंदर श्याम सलोना ।
कीरति जू हँसि लियौ अंक भरि, जसुमति जू कौ छोना ।
भोजन सुहथ कराई नेह युत, सीतल जल जु अचौना ।
ललितादिक लै चली खिलावनि, जहाँ दाइजे गौना ।
रंग गुलाल बगेलत खेलत, राधा संग नचौना ।
गारी गावति सखी लड़ावत, होरी छंद रचौना ।
ललकत वलकत रस छकि घूमत, उर सुख मुख गह्यौ मौना ।
कीरति दुरि निरखति मन हरषित, हिय सुख सिंधु बढ़ौना ।
वृन्दावन हित रूप आसीसत, ये दोऊ लाड़ खिलौना ।

 

तो पै होरी में किशोरी रंग डारैगी ।।
क्यों इतनो इतरावै मोहन सबरी कसर निकारैगी ।
लूट लूट दधि माखन खायो गालन गुलचा मारैगी ।
तक तक के मारै पिचकारी अबीर गुलाल उड़ावैगी ।
नंदनंदन तारी बजाय के सखियन बीच नचावैगी ।
श्याम सुंदर आज तोहि पकरैगी घिस घिस अंग निखारैगी ।
पुरुषोत्तम प्रभु होरी खेलौ तन मन सब तोपै वारैगी ।

होरी रे होरी रे होरी रे होरी रे ।।

इत ते आये कुंवर कन्हैया इतते राधा गोरी रे-३ होरी रे ।
बाजत ताल मृदंग झांज डफ और नगारे की जोरी रे-३ होरी रे ।
उड़त गुलाल लाल भये बादर मारत भर भर झोरी रे-३ होरी रे ।

आज श्याम तुम खेलों मोते होरी ।।

माथे चमक रही है बिंदिया घूँघट बचाय तुम खेलों मोते होरी ।
नैंनन नहनो कजरे की रेखा कजरा बचाय तुम खेलों मोते होरी ।
आजहूँ ओढ़ी नई चुनरिया चुनर बचाय तुम खेलों मोते होरी ।
स्यालु सरस रेशमी लंहगा लंहगा बचाय तुम खेलों मोते होरी ।
नई नई होरी में आई लाज बचाय तुम खेलों मोते होरी ।

वृषभानु भवन की पौरीन में होरी खेलै सांवरो ।
ब्रज की वधू सब जुर मिलि आई लिये रंग कमोरिन में ।
चोवा चन्दन और अरगजा अबीर लिये भर झोरिन में ।
ब्रज दूलह यह छैल अनोखौ दाव लग्यौ भर कौरिन में ।

मैं तो होरी खेलन जाऊँ मेरी बीर नांय माने मेरो मनुवा
होरी को अलबेलो छैला, मैं तो वाते नेह लगाऊँ मेरी वीर ।
भर पिचकारी रंग की मारूँ, मैं तो अबीर गुलाल उड़ाऊँ मेरी वीर ।
ऐसो रंग डारुँ कारे पै, मैं तो गोरो आज बनाऊँ मेरी वीर ।
दै गुलचा सीधो कर डारुँ, मैं तो सबरी टेढ़ निकारुँ मेरी वीर ।
चीर हरन को बदलो लूँगी, मैं तो पीताम्बर छुड़ाऊँ मेरी वीर ।
हरि को नंगो कर होरी में, मैं तो नैनन नैन लडाऊँ मेरी वीर ।

उँगरी पै नाच नचाय दूँगी मोय जानै न साँवरिया ।।
जो मोपै तू रंग डारैगो, भर गागर रंग डारूँगी ।
जो मेरे गाल गुलाल मलैगो, तो गोरो तोय बनाय दूँगी  ।
जो अंगिया ते हाथ लगायो, तो नंगो तोय कराय दूँगी ।
जो चूनर तू मेरी पकरै, गुलचा गाल लगाय दूँगी  ।
तोय करूँ होरी को भड़ुवा, गलियन माँहि फिराय दूँगी  ।

होरी तो खेल मतवारी गुजरिया भागन ते फागुन आयो गुजरिया ।

रूप की तू देवी ओ हम हैं पुजारी, तू है बड़ी दाता ओ हम हैं भिखारी ।
भीख दै दे ठाड़े हैं तेरी डगरीया ।।

राजी ते खेल लै ओरी, दीवानी ना तो करेंगे ऐंचातानी ।
फारेंगी तेरी ये लाल चुनरिया ।।

बचके न जावेगी ओरी छबीली, ऐसी मिली जैसे मुहरन की थैली ।
खोल भण्डार तेरी लचकै कमरिया ।।

गोरे गाल गुलाल लगाय ले, मेरे दुपट्टा ते पीक पौंछ ले ।
ढ़ार ले तू मोपै रंग की गगरिया ।।

घूँघट में ते मोहड़ो चमकै, बिंदिया तेरी दम-दम दमकै ।
छूरी कटारी है तेरी नजरिया ।।

 

साँवरे ने गारी दई मैं तो लाजन मारी रही ।।
गारी की गारी ताने के ताने एक की लाख कही ।
होरी की भीर में आय अचानक बैंया मेरी गही ।
भर पिचकारी छतियन मारी अंगिया गरक रही ।
घूंघट खोल गुलाल मल्यो मेरे गालन बरज रही ।
बरजोरी कीनी नटखट ने मैंने पीर सही ।
आग लगै या होरी में याने बहुतै बुरी कही ।

भायेली मोय बताय दै ब्रज में  गुजारो कैसे होय ।।
जग में होरी ब्रज होरंगो, हाँसी सी ठट्ठा ओ हुरदंगो ।
भायेली सीख सिखाय दै ब्रज में गुजारो कैसे होय ।।
भीतर रहूं तो हेला देवै, बाहर जाऊँ तो होरी गावै ।
भायेली अकल बताय दै ब्रज में गुजारो कैसे होय ।।
गैल गिरारे खेलै होरी, छतियन पै मारै पिचकारी ।
भायेली गैल दिखाय दै ब्रज में गुजारो कैसे होय ।।
बड़ो छैल नन्द को उतपाती, गरे लगावै लिपटै छाती ।
भायेली याय बताय ब्रज में गुजारो कैसे होय ।।

होरी में काहे भागे अरे लगवाय लै कजरा नन्द जू के ।।
काजर तोय लगाऊँ ऐसो, तिलक लगावै तू सज के जैसो ।
छैला अपनो साज आज सजवाय लै ढोटा नन्द जू के ।।
बहुत दिना तक मटकी फोरी, बहुतै करी तैने माखन चोरी ।
अपनी सबरी करनी को फल पाय लै लाला नन्द जू के ।।
भर-भर डारूँ रंग कौ गड़ुवा, तोय करूँ होरी को भड़ुवा ।
बन्यौ ठन्यौ डोलै रसिया रस पाय लै छोरा नन्द जू के ।।

नंदगाँव अनौखौ नन्द को जहाँ चपल चबाई लोग ।।
निपट अभेंड़ो सावएै हँस कै लगावै दोऊ नैन,
रोके टोके गैल में मोतै बोलै रसीले बैन ।।
पनघट पै ठाड़ो रहे भर-भर  देय उचाय,
व्यार चलै ऊचए उड़ै मेरो हियरा लेत लुभाय ।।
जैये तो रहिये कहाँ यह सुख और न ठौर,
होरी को धूमस रहै नित नन्दभवन की पौर ।।
कान काहू की नाय करै याको रसिया सबरौ गाम,
सागर के हिय में बसै यह मूरत घनश्याम ।।

तेरे जोवन कौ मनमोहन है रिझवार ।।

रूप सलोनी तू गजगौनी रूप जोवन दिन चार ।
भांमर सी फिर बोई करत हौ यही तेरो व्यवहार ।
दया सखी घनश्याम लाल सो मिलिये गल भुज डार ।

चल बरसाने खेलैं होरी ।।

ऊंचो गाम धाम बरसानो जहाँ बसै राधा गोरी ।
उत ते आये कुंवर कन्हैया इत आई राधा गोरी ।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक देखन आये रंग होरी ।
कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु सों फगुवा लियो भर भर झोरी ।

अलबेली के यार सोहे कजरा ।।

सोहे सरस सलोनो कजरा परे भुजन पीरे अंचरा ।
राधा नैन बने दोउ तोता मोहन नैन बने पिंजरा ।
प्रेम रसिक प्यारी मुख मोडयौ हँसि मुसक्याय दियौ कजरा ।

अंगिया दरक रही मेरी रे जोवना तेरी ओट ।।
सुन रे दरजिया के छोरा घुंडी लागी महराज ।
एक तो पान ते पतरी हूँ सोलह लगे कहार ।
एक तो मैं जोवन माती दूजै सैंया नादान ।
एक तो मैं राजा की बेटी दूजै भई बदनाम ।

वारे की नारि झूला नीम किन दयौ ।।
झूला पै ते गिर परि याको यार गयो बलखाय ।
हाथ टटोरे पाम टटोरे याको यार गयो मुरझाय ।
हाथ न हाले पाम न हाले छतिया ते लइ चिपकाय ।

होरी खेलत बिछुवा खोयो लीजो लीजो रे छैल ढ़ुँढ़वाय ।।
कै भूली तेरी सेज पै काऊ सौत ने लियौ चुराय ।
खोय गयो तो खोय जान दै नयो दऊं गड़वाय ।
बिछुवा रतन जड़ाव कौ तेरो सबरो गांव बिक जाय ।

लगन तोते लग गई रे अरे लगवार ।।

धमकि अटरिया चढ़ी गई वही ते रिपटयो पाँव किवरिया खुल गहेरे ।
चढ़त अटरिया हाकिम देखी उतरत देखी कोतवाल उजागर है गई रे ।
५०० रुपैया हाकिम मांगे १० मांगे कोतवाल बदरिया फट गई रे ।

रसिया मेरी लहर उतार रस तो लै दोनू नैनन को ।।
गोरी जो तेरी लहर उतारहौं रंचक मोय पानीरा प्याय ।।१।।
लाला हमरो पानीरा विष भरयो पीवै रे गरद है जाय ।
गोरी जो तेरो पानीरा विष भरयो तेरे घर को कौन हवाल ।।२।।
लाला हमरे घर को वायगी (गारुड़ी) पीवे रे नेक लहर उतार ।
हम हूँ बनेंगे तेरे वायगी गोरी पीवै लहर उतार ।।३।।

रसिया मेरी गागर उतार जोर जरन लागी जेहर की ।
लाला इखने चढ़ दुखने चढ़ी तिखने रे मोपै चढ़यो न जाय ।
गली-२ डोलै वैद्य कौ या वैदे रे नेक उरे बुलाय ।
वैद कूं डार खुटोलना मुड़ला पै बैठी आय ।
नारी टटोरै बैद कौ तेरे विरह बिथा रही आय ।
मैं अच्छी होनी नही अपयस आवै तोय ।
रसिक छैल होरी में भेटूं तव कल आवै मोय ।

नथ कौ तोता बोलै तेरी ।।

उड़ तोता होंठन पै बैठ्यो दोनूं गाल मरोरै ।
उड़ तोता हियरा पै बैठयो चोली के बन्दा खोलै ।
उड़ तोता पेडूं पै बैठयो पचमनिया सो पोवै ।

सुन साँवरा यार तेरा बिरज जाने कैसा ।।

तेरे बिरज में कुआ बावरी, तेरे बिरज में सागर ताल ।
तेरे बिरज में तबला सारंगी, तेरे बिरज में बजै सितार ।
तेरे बिरज में नीबू नारंगी, तेरे बिरज में पके अनार ।
तेरे बिरज में गैया बछरा, तेरे बिरज में दूध की धार ।
तेरे बिरज में होती बरजोरी, तेरे बिरज में अँचरा फार ।

सारे बरसाने वारे, रावल वारे सारे सब ।।
जगन्नाथ के नाती सारे वे बरसाने वारे ।
डोम ढ़ड़ेरे सब ही सारे और पतरा वारे ।
बाग बगीचा सब ही सारे सारे सींचन वारे ।
बिरकत और गुदरिया सारे लम्बे सुतना वारे ।
बाबा जी भानोखरि सारे चौके चूल्हे सारे ।
अहलायत महलायत सारे गैल गिरारे सारे ।

बलि छलन चलो त्रिलोकी ।।

चरनन पहरे चरन खड़ाऊँ, सिर पै पचरंग टोपी ।
हाथ में लै लई ब्रह्म लकुटिया, बगल में भगवंत पोथी ।
बलि राजा के द्वारे जाय के, बात कही इक मोटी ।
तीन पेड़ पृथ्वी दे राजा, कुटिया बनाऊँ छोटी ।

तेरी मेरी है जोरी आजा खेलैं हिलमिल होरी
तेरी मेरी का जोरी कान्हा तू कारो मैं गोरी ।।
द्वै-द्वै तेरे बाप कहत हैं, नन्द वासुदेव कई जोरी ।
मैया ते जा पूछ पिता को, गोकुल की या मथुरा को री ।
नन्द जसोदा गोरे (सुनियत) लाला, तू क्यों कारो भयो री ।
कहा खोट मैया में कैसे, कारो तोहि जन्यो री ।
घर-घर डोलै उझकत, तू तो कर तो डोलै चोरी ।
नार पराई तकतो डोलै, चाहे ब्याही क्वारी छोरी ।
नंदगाँव के चोर ग्वारिया, (सब मिल) लूटैं भरी कमोरी ।
लठामार में लट्ठ परै जो, (सवरी) भूल जाय बरजोरी ।
ऐसोइ भँग-घोटा तेरो भैया (दाऊ), भंगड़ धत्त परो री ।
कोड़न की जब मार परै, तब हा-हा खावै होरी ।

बलि मत दै दान जिमी को ।।

याय छोटो मत जाने राजा, यू छलिया है देय दिनी को ।
याई ने मोरध्वज छल लियो, धारो रूप तपसी को ।
याई ने हरिश्चन्द्र छ्ल्यो, जाने भरो नीर भंगी को ।
याई ने हरनाकुस मारो, वन के सिंह बनी को ।
याही ने रावन को मारो, जोधा लंकपुरी को ।
तुलसीदास आस रघुवर की, चरनकमल चित नीको ।

पांडो कर गये राज धरम को ।।

कौरो पांडो चौपर खेलै, पासो पर्‌यो करम को ।
कूआ हाट बावरी हारे, ऊपर पौधा वर को ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, ध्याव धरे गिरिधर को ।

हरि तेरो पार न पायो ।।

मथुरा में हरि जनम लियो है, गोकुल में भयो बधायो ।
नन्द बाबा घर कन्या जनमी, वसुदेव कुँवर कहायो ।
गज और ग्राह लड़े जल भीतर लड़त-लड़त गज हारो ।
जौ जौ भर सूंड़ रही नल ऊपर, जब हरि नाम सँवार्‌यो ।
गज की टेर द्वारका में लागी, नंगेई पामन धायो ।
ग्राह मार धरती पै लाये, जब गजराज उबार्‌यो ।

जिन जैयो रे गोरी तू पनघट ।।

दुस्मन नैन मरखने तेरे वो रसिया नन्द को नटखट ।
जो घूँघट पट ओट करेगी रसिया चोट करे परघट ।
रसिक बिहारी जू की नजर बुरी है कर डारै छिन में चटपट ।

मो मन यह व्यापी पकर मोहन पें वैर लेहूँ ।।

सब सखियन में छिप जो चलों पाछें ते दौरी जाय अंजन देहूँ ।।१।।
करगहि पीठ गड़ाय कुचन सों कान पकर के गुलचा देहूँ ।
कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु पें मनभायो हों फगुवा लेहूँ ।।२।।

मदमातौ महिना होरी कौ ।

प्रेम उमंग बजाय चंग कौ, गावत रसिक किशोरी कौ ।।
हाट बाट रोकत बृजबाला, खोलत घूँघट गोरी कौ ।
गाल गुलाल लगावत मोहन, काम करत बरजोरी कौ ।।

हा हा ब्रजनारी री आखें जिन आँजो ।।

जो आँजो तो आप आँजिये, और हाथ जिन देहो ।
हाँसी हानि दुहूँ विध जोखो, समझ बूझे किन लेहो ।।१।।
सुनहें मेरे सखा संग के, हँस-हँस दैंहैं तारी ।
बड़े खिलार कहावत हैं हरि, आँख कराई कारी ।।२।।
परम प्रवीण जान पिय जिय की, मृदु मुसिकाय निहारी ।
कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु कों, रीझ भरत अँकवारी  ।।३।।

नारी गारी दे गई वे माई हो हो होरी आई ।।

मदनमोहन पिय बांसुरी बजाई श्रवण सुनत गृह तज जुर धाई ।।१।।
चंद्रावली अंजन के आई पकर मोहन जू की आंख अंजाई ।
फगुवा बिन दोयें कैसे जे हो धोंधी के प्रभु कुंवर कन्हाई ।।२।।

तुम बिन खेल न रुचे लगार सुंदर या रहो तुमहो सुघर खिलवार ।।

नारि सब मिल गावत आवत, पिचकारीन की ह्वै रही मार ।।१।।
द्वार द्वार फगुवा के कारण करो करो कर रहत ब्रजनार,
अन्तर्यामी आनन्ददाता सूरप्रभु तुम नंदकुमार ।।२।।

कंकरी दै जेहर फोरी सबरी भिजई ।।

कंकरी दई दया नाय कीनी, पिचकारी की चोट जो दीनी ।
भीजी सारी सुरंग नई ………. ।।

चकरी-सी मोय नाच नचाई, केसर कीच कुचन लपटाई ।
जो लौं ननदुल आय गई ……….।।

मोहन प्रगट भये ब्रज जब ते, शालिग्राम बौरी भई तब ते ।
हँस कै गरे लगाय लई ………. ।।

होरी हो ब्रजराज दुलारे ।।

अब क्यों जाय छिपे जननी ढिंग, द्वै  बापन के वारे ।
कै तो निकस के होरि खेलो, कै  कहो मुख ते हारे –
जोर  कर  आगे हमारे ।

बहुत दिनन सों तुम मनमोहन फाग ही फाग पुकारे ।
आज देखियो खेल फाग कौ, रंग की उड़त फुहारें –
चले जहाँ कुम–कुम न्यारे ।

निपट अनीति उठाई  तुमने, रोकत  गैल गिरारे ।
नारायण अब खबर परेगी, नेक निकस आय द्वारे –
सूरत अपनी दिखलारे ।

 

सुन मोहन रसिया होरी के ।।

ये किवार नहीं खोल सकत कोऊ, बिन कहे भानु किशोरी के ।।
समझति हैं तुम्हरी चतुराई, यह दिन है बरजोरी के ।
हीरा सखी हित कहत न बिसरत, जो तिहारे गुन चोरी के ।।

पल्ले पर गई रंग में रंग दई होरी खेलत रसिया ।।
लहंगा सबरो रंग में में कर दियो रंग दइ अंगिया ।
रंग बिरंगी कर के छोड़ी रंग दइ फरिया ।
डफ लै होरी गावन लाग्यो दै दै के हँसिया ।
हांसी सुन रिस लागै बदलो लूंगी मन बसिया ।
रसिया की धोती पकड़ी मैंने मूठन ते कसिया ।
धोती फाड़ बनायो कोड़ा पीटयो मन भरिया ।
पिट-पिट के हू फाग सुनावै दाऊ को भैया ।
ऐसो भयो होरंगो ब्रज में गावै दुनिया ।

जो होरी तू ब्रज में बसैगी ।।

तौ तू कहाँ लों निशदिन सुन्दरि, घर में बैठि रहेगी ।
भाग सभागे काहू दिना तू, मोहन हाथ परैगी ।
जान जब तोकूँ परैगी ।।

धूम हुरारेन की सुनि सजनी, झमकि अटा पै चढ़ैगी ।
सुनि-सुनि नाम गारिन में अपनों, तू मुख मोर हँसैगी । छैला मन बस में करैगी ।।

लै लै लाल गुलाल मलेंगे, गोल कपोल सहैगी ।
तक-तक तेरे ऊँचे कुचन पर, कुमकुमा मार मचैगी ।
मौज सब तन की लुटैगी ।।

तो चुनरि औ पीताम्बर की, पिय संग गाँठ जुरैगी ।
नागरीदास बीच सखियन के, मोहन संग नचैगी ।
स्वाद रस को समझेगी ।।

 

मत मारो श्याम पिचकारी, अब दउँगी गारी ।।
भीजैगी लाल नई मेरी अंगिया, चूनर बिगरेगी न्यारी ।
देखैगी मेरी सास रिसै है, संग की ऐसी है दारी ।
हँसेगी दै-दै तारी ।।१।।

घाट-बाट नित रोकत-टोकत, लै-लै रार उधारी ।
कहाँ लों तेरी कुचाल कहूँ मैं, एक-एक ब्रजनारी ।
जानत करतूत तिहारी ।।२।।

मूठ अबीर जनि डारौ लालन, दूखैगी आँख हमारी ।
नारायण न बहुत इतराओ, छाँड़ो डगर गिरधारी ।
नये भये तुमहिं खिलारी ।।३।।

 

नेह लाग्यो मेरो श्यामसुंदर सों ।।

आई बसंत सबै वन फूल्यो, खेतन फूली सरसों ।
मैं पीरी भई पियके बिरह सों, निकसत प्राण अधर सों ।
कहो जाय वंशीधर सों ।।१।।

फागुन में सब होरी खेलैं, अपने-अपने बर सों ।
पिया के वियोग जोगिन ह्वै निकसी, धूर उड़ावत कर सों ।
चली मथुरा की डगर सों ।।२।।

ऊधो जाय द्वारका कहियो, इतनी अरज मेरी हरि सों ।
बिरह व्यथा ते जियरा डरत है, जब सों गये हरि घर सों ।
दरश देखन को मैं तरसों ।।३।।

सूरदास मेरी इतनी अरज है, कृपासिंधु गिरधर सों ।
गहरी नदिया नाव पुरानी, अबके उबारो सागर सों ।
अरज मेरी राधावर सों ।।४।।

 

प्यारे पिया खेलत होरी ।

नंदनंदन अलबेलो नागर, श्री वृषभानु किशोरी ।
परमानन्द प्रेम रस लीने, लिए अबीर भर झोरी ।
करत मन में चित चोरी ।।१।।

भुज भर अंक सकुच तज गुरुजन, विचरत हैं मिलि जोरी ।
छूटी अलक उरझि कुंडल सों, बेसर प्रीति फस्यो री ।
चलो सुरझाओ गोरी ।।२।।

कर कंकण कंचन पिचकारी, केशर भर-भर ढोरी ।
छिरकत फिरत हुलस लिए हरषत, निरखत हँस मुख मोरी ।
चलो क्यों होइयो बौरी ।।३।।

धन गोकुल धनि श्री बृंदावन, जहाँ पर फाग रच्यौ री ।
श्री रस रंग भीजि रहे ब्रज पर, वारों बैकुंठ करोरी ।
पा लागूं कर जोरी ।।४।।

 

श्याम मोसों खेलो न होरी ।।

जल भरबे कूँ घर ते निकसी, सास ननद की चोरी ।
सिगरी चूनर रंग में न भिजबो, इतनी अरज सुन मोरी ।
करो न बहियाँ झकझोरी ।।१।।

छीन झपट मेरे हाथ सों गागर, नरम कलाई मरोरी ।
छाती धरकत सांस चढ़त है, देह कँपति सब मोरी ।
दुःख नहिं जात कह्यो री ।।२।।

अबीर गुलाल मुखहिं लपटायो, सारी रंग में बोरी ।
सास हजारन गारी दै है, बालम जियत न छोरी ।
जिय आंतक दयो री ।।३।।

फाग खेलके तेने रे मोहन, कहा गति कीनी मोरी ।
सूरदास मोहन छवि लखिके, अति आनंद भयो री ।
सदा उर बास करो री ।।४।।

 

श्याम करी बरजोरी, सुरंग चूनर रंग बोरी ।।
आज प्रभात गई दधि बेचन, सिर पर धरी कमोरी ।
आय अचानक कुसुम छरी कौं, मारि मटुकिया फोरी ।
करी दधि में सरबोरी ।।

घेरि खड़ो मग संग सखन के, घन बादल दल ज्यों री ।
धारि सहस धारा पिचकारी, वर्षा करी झकोरी ।
निठुर केशर रंग घोरी ।।

मृदु मुसक्यान दशन दामिनि की, दमक दिखाय बहोरी ।
मेघ समान मधुर भाषण करि, रहसि मली मुख रोरी ।
लंगर घूँघट पट छोरी ।।

अंत बसें तजि गाँव तुम्हारो, श्री बृषभानु किशोरी ।
वासुदेव पे नहिं सही जात है, नित्य अनिति ठठोरी ।
रहे जाके नित होरी ।।

श्याम मली मुख रोरी, तनक मुख सों कहो गोरी ।।
चन्द्र समान विमल आनन की, पंकज प्रभा सकोरी ।
विथुर रही मुख पर ब्यालन सी, अलकावलि चहुँ ओरी ।
मनहुँ बल गरल निचोरी ।।

मणि चंद्रिका भई बक्रा गति, कुंकुम भाल दुत्यौरी ।
गोल कपोलन पै दशनन कौ, उपबन अति दर सौरी ।
श्रमित जल बिंदु ढलोरी ।।

नवयुग उरज कमल कलिका को, किन कर कठिन मरोरी ।
गरू सब करी कंचुकी, किन चूनर रंग बोरी ।
मृदुल बैयाँ झकझोरी ।।

लटपट चलत लचक कटि कोमल, गति गयंद तजि भोरी ।
वासुदेव तेहि को ब्रज बल्लभ, निश्चय आज मिल्यो री ।
नयो यह फाग रच्यौ री ।।

 

साँवरे मोते खेलो न होरी ।

मैं अबही आई या ब्रज में, करो मती बरजोरी ।
जल भरबे पठई ननदी ने, यमुना जी की ओरी ।
मलो न मेरे मुख रोरी ।।

गैल छैल तजि दीजै अबहो, सासु लरै पिय मोरी ।
जानि परत छलिया तुम बाँके, हम जिय की अति भोरी ।
छाँड़ि देउ करत निहोरी ।।

समझति हों तुम ढीट नंद के, करत फिरत दधि चोरी ।
बहुत अनीति बगर में रोकत, जो निकसति नव गोरी ।
भली मर्यादा तोरी ।।

हीरा सखी हित बरजत मोहन, नख सिख लों रंग बोरी ।
मन आशा पूरण कीनी सब, गागरि सिर ते फोरी ।
कही जावो गृह खोरी ।।

रंगन भीजि गई मेरी साड़ी सुरंग नई ।
पहरन काढ़ी ननदुल बरजीं, अब ही मोल लई ।
बरज यशोदा अपने लाल कौ, यह सिख कौन दई ।
इच्छाराम प्रभु या ब्रज बस के, ऐसी कबहुँ न भई ।।

होरी खेलत श्याम मोते झूम-झूम ।।
रंगवारी पिचकारी, धर मारी गिरधारी ।
गई भीग सब सारी, मेरो रोम-रोम याते घूम-घूम ।
श्याम सुन्दर छैलो रसिया बड़ो रंगीलो ।
करत फिरत सैलोरी, ब्रज में मच रह्यो री धूम-धूम ।
अटी है अटा अटारी, अटी सब ब्रज नारी ।
अटी जमुना किनारी, अट गई सब ब्रज की भूमि-भूमि ।
गलियन गलियन, सखियन सखियन ।
खेलैं रंगरंलियन री, सब को मुख ले वै चूम-चूम ।।

अरी चल नवल किशोरी ।।

राधा जू गारी सुनि-सुनि हँसि-हँसि, हरि तन हेरि लज्याइ ।
ललन अबीर मरत ग्वालिनि कौ, प्रान प्रियाहि बचाई ।
और जु प्रेम विवस रस कौ सुख, कहत कह्यो नहिं जाइ ।
जेहि सुख कहिवे कौं कोटिक, सरसुती की सुमति हिराइ ।
सेस महेस सुरेस न जानै, अज अजहू पछिताइ ।
सो रस रमा तनक नहि पायौ, जदपि पलोटत पाइ ।
श्रीवृषभानुसुता पद अंबुज, जिनके सदा सहाइ ।
इहि रस मगन रहत जे तिन पर, नंददास बलि जाइ ।

अलगोजा श्याम बजायो ।।

काहे को तेर्‌यो बनो अलगोजा, काहे ते जड़वायो ?
हरे बाँस को बनो अलगोजा, रतनन ते जड़वायो ।
एक दिना गिरिवर पै बाज्यो, नख पै गिरिवर धार्‌यो ।
एक दिना कालीदह पै बाज्यो, नाग नाथ कै डार्‌यो ।
एक दिना बरसाने में बाज्यो, फाग को खेल रचायो ।
एक दिना गहवर में बाज्यो, हिल मिल रास रचायो ।
इक दिन बाज्यो खोर साँकरी, लूट लूट दधि खायो ।

कान्हा पिचकारी मत मारै चूनर रंग बिरंगी होय ।।
चूनर नयी हमारी प्यारे,

हे मनमोहन वंशी वारे,

इतनी सुनलै नन्ददुलारे,

पूछैंगी वो सास हमारी कहाँ ते लई भिजोय ।
सबकौ ढंग भयौ मतवारौ,

दुखदाई है फागुन वारौ,

कुलवंतिन कौ औगुन गारौ,

मारग मेरो अब मत रोकै मैं समझाऊँ तोय ।
बहु विधि विनय करैं सुकुमारी,

आड़े ठाढ़े हैं गिरिधारी,

बोलैं मीठे वचन बिहारी,

होरी खेल अरी मन भाई फागुन के दिन दोय ।
छाँड़ दई रंग की पिचकारी,

हँस-हँस के रसिया बनवारी,

भीज गयी सबरी ब्रजनारी,

ग्वालिन ने हरि कौ पीताम्बर छोर्‌यो मद में खोय ।।

 

चूनरिया रंग में बोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।।

चूनर नई बड़ी चटकीली,

चटकीलौ रंग घोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
जान न पाई कित ते आयो,

औचक ही झकझोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
गालन मल्यो गुलाल निरदई,

घूँघट कौ पट छोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
बरजन लगी हाथ पकरे जब,

बैंया तनक मरोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
लिपटन लग्यौ नन्द कौ मो ते,

हियरे प्रेम हिलोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
खैंचा खैंची करकें छूटी,

मोतिन की लर तोर गयौ कान्हा बंशी वारौ ।
ऐसौ रसिया कब मैं देखूँ,

छोटो सो मन चोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।
होरी खेलन के दिन मोते,

डोर प्रीति की जोर गयौ कान्हा वंशी वारौ ।।

मैं पानीरा जाऊँ वहाँ मच रह्यौ ख्याल री ।

ऐसे री उपाधी वाके संग के ग्वाल री ।
हाथन में पिचकारी फेंटन गुलाल री ।
मोहि देखि आवै छैला गजगति चाल री ।
रूप जो भयौ मेरे हिय कौ जंजाल री ।
नागरिया पग कंपै होत बेहाल री ।
अब कैसें जाऊँ आगे ठाड़े गुपाल री ।।

छेड़ै रोज डगरिया में तेरो ढीट कन्हैया मैया ।।
बरस दिना याकी होरी होवै,

पूछो सबै नगरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
फागुन की तौ कहा बताऊँ,

छाँड़ै रंग घघरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
भर-भर फेंट गुलाल उड़ावै,

करदे छेद बदरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
ऊबट बाट अकेली घेरै,

रोकै गली संकरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
बैठ कदम पै वंशी बजावै,

लै लै नाम बँसुरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
भयो दिवानों फाग खेल जाय,

देखो गली बजरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।
कैसे कोई बचैगी याते,

डारै जाल मछरिया में तेरो ढीट कन्हैया ….।।

नई कुञ्ज निकुँजन में आजु रंगीली होरी ।
इत स्यामा उत स्याम मनोहर, खेलत उमँगि न थोरी ।।
छल बल घात लगावत मोहन, अंग बचावत गोरी ।
सावधान दोउ सुघर सिरोमनि, अपनी अपनी ओरी ।।
कोक कला कल केलि परस्पर, जोवन जोर किसोरी ।
चतुर खिलार लाड़िली लालन, तुम जिनि जानौ भोरी ।।
हा हा करौ परौ पायन, अब ना चलि हैं बरजोरी ।
भगवतरसिक उदार स्वामिनी, दै है सरबसु छोरी ।।

या में कहा लाज कौ काज खेल लै होरी रंग भरी ।।
बरस दिना में होरी आई,

रसिकन कौ ऐसी सुखदाई,

मानो बूढ़े मिली लुगाई,

मन की बतियाँ पूरी कर लै नहिं तो रहैं धरी ।
ऐसो समय फेर नाय आवै,

भागन ते फागुन रस पावै,

नीरस देख-देख खिसियावै,

सुनकैं निकर चली वह ग्वालिन मोहन नें पकरी ।
लै गुलाल वाको मुख माड्यो

प्रेम बीज हियरे में गाड्यो

रंग बिरंगी करके छाड़्‌यो

ऐसी दीख रही वह ग्वालिन जैसे फूल-छरी ।
पीताम्बर हरि कौ वह पकर्‌यो,

रंग भर्‌यो अपनो मुख पोंछ्यो,

देखै श्याम प्रेम में जकर्‌‌यो,

तब ते नेह जुर्यो ग्वालिन कौ गौहन आय परी ।।

मत डारौ अबीर गुलाल रसिया, आँखिन में मेरे करकेगो

अछन अछन पाछैं अलबेली, निरख नवेली बाल ।।
नयौ फाग जोबन रस भीनौ, करत अटपटे ख्याल ।।
दयासखी घनस्याम लाड़िले, भुजभर करी निहाल ।।

हरि होरी कौ खिलार आयौ सब मिल घेरो री ।।

बहुत बार याने मटकी फोरी,

दीखै जहाँ साँकरी खोरी,

सबरी घेरीं ब्रज की गोरी,

या नें बहुतै कियो बिगार याकी वंशी चोरो री ।
याद करो जब चीर चुरायौ,

ऊपर चढ़ गूंठा दिखरायौ,

सबन हाथ ऊपर जुरवायौ,

ये कैसा ऊधमगार मिल पीताम्बर छीनो री ।
आज हमारौ दांव बन्यो है,

देखौ कैसौ आज सज्यो है,

तिलक मुकुट ते खूब फब्यो है,

ठकुराई लेओ निकार याकौ रंगन बौरौ री ।
सब मिल पकरीं नन्द कौ लाला,

मगन भईं ब्रज की सब बाला,

मन की करी सबै तिहि काला,

हँस देवैं गुलचा मार राख्यौ कर चेरौ री ।

साँवरिया तेरी बृज नगरी, कैसे आऊँ रे ॥
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, बीच बहै जमुना गहरी ॥१॥
पाँव चलूँ तो मेरी पायल बाजे, कूद पड़ूँ तो डूबूँ सगरी ॥२॥
भर पिचकारी मेरे मुख पर डारी, भीज गई रंग से चुनरी ॥३॥
केसर कीच मच्यो आँगन में, रपट परी राधे गँवरी ॥४॥
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, चिरंजी रहो सुन्दर जारी ॥५॥

 

अरी होरी में है गयौ झगरौ सखियन ने मोहन पकरौ ।।

धावा बोल दियौ गिरिधारी,

नन्द गाँव के ग्वाला भारी,

छाँड़ रहे रंग की पिचकारी,

निकसत में रिपटैं सबरौ, सखियन ने ….।
सखियन के संग भानदुलारी,

लै गुलाल की पोटैं भारी,

मार रहीं हैं भई अँधियारी,

ह्वां दीखै नाही दगरौ, सखियन ने ….।
सखा भेष सखियन ने धार्‌यौ,

सबही मिलकैं बादर फार्‌‌यौ,

अचक जाय के फंदा डार्‌यौ,

छैला कूँ  कसकैं जकरौ, सखियन ने ….।
धोखौ भयो समझ गये मोहन,

लाईं बरसाने की टोलन,

हँस हँस आईं हरि के गोहन,

गुलचन ते कर दियौ पतरौ, सखियन ने ….।
मन भाई कर लीनी हरि ते,

बतरावैं तीखी आँखन ते,

सखि रूप कर दियो पुरुष ते,

परमेश्वर कौ झरौ नखरौ, सखियन ने ….।।

श्रीबिहारी विहारिनि की (रे) मोपै यह छबि बरनी ना जाय ।।
तन मन मिले झिले मृदु रस में आनन्द उर न समाय । श्री…
रंगमहल में होरी खेलैं, अंग अंग रंग चुचाय । श्री…
श्रीहरिदास ललित छबि निरखत, सेवत नव-नव भाय ।। श्री…

मेरी अँखियन में निरदई, श्याम ने मारी मूठ गुलाल ।।

भई किरकिरी आँख हमारी,

अचक आयकें घूँघट टारी,

पूछन लग्यो कहा भयो प्यारी,

मेरी अँखियन पे पीताम्बर मलन लगे गोपाल ।
आखन ते गुलाल काढ़ै वह,

फूँक मार रस की बातें कह,

चूमै नैंन हटाये हू रह,

आग लगै होरी में ऐसो ऊधम ब्रज यहि काल ।
या विधि नित ही होरी खेलै,

रोकत टोकत ब्रज में डोलै,

बिना बुलाए मीठे बोलै,

ऐसी बात करै रस की सुन जियरा होय बिहाल ।
नन्द महर कौ बड़ौ रसीलौ,

नयौ फाग जोबन गरबीलौ,

झूमक दै नाँचै मटकीलौ,

पाय अकेली संग न छाँड़ै होरी के लै ख्याल ।।

आँख जिन आँजो हा हा ब्रजनागरि ।।
जो आँजो तो आप आँजीयै और हाथ जिन देहो ।
हाँसी हानि दुहूँ बिधि जोखौ समुझि बुझि किन लैहो ।।
सुनिहैं मेरे सखा संग के हँसि हँसि देहें तारी ।
बड़े खिलारी कहावत है हरि आँखि करायी कारी ।।
परम प्रवीन जानि पिय जियकी मृदु मुसिकाय निहारी ।
कृष्ण जीवन लछीराम के प्रभु कौ रीझी भरत अँकवारी ।।

रंगीली होरी आई धूम मची बरसाने ।।
छैला दूलह आज बन्यौ है,

सखा संग लै आय अर्‌यो है,

रात-दिना को खेल मच्यौ है,

नगारिन जोरी आई धूम मची बरसाने ।
ढप बाजत सुन के ब्रजनारी,

चाव भई खेलन की भारी,

निकर परीं लै भानुदुलारी,

रूप की घटा सुहाई धूम मची बरसाने ।
धाय चलीं बिन घूँघट मारै,

मतवारी अँचरा न सँवारै,

अनवट और बिछुवन छनकारें,

लगीं गावन सुखदाई धूम मची बरसाने ।
चढ़े ग्वाल जोवन मदवारे,

नाँचैं अखियन डोरा डारे,

नेंक न मानैं बकैं उघारे,

चली रंगन पिचकाई धूम मची बरसाने ।
लै हाथन फूलन की छरियाँ,

लटक लटक के मारैं सखियाँ,

सखा बचावैं लै फिरकैंयाँ,

हार ग्वालन नें पाई धूम मची बरसाने ।
कह्यो श्याम ने सुनो रे भैया,

बरसाने की चतुर लुगैया,

फगुवा देवो घर बगदैया,

जीत राधे पै छाई धूम मची बरसाने ।।

मेरे मुख पै अबीर, मेरे मुख पै अबीर, कान्हा ने कैसी मारी ।

ये मारी वो मारी हाँ मारी रे ।।

काहे की लै लई पिचकारी,

काहे को नीर, काहे को नीर, कान्हा ने ….।
कंचन की लै लई पिचकारी,

रंगन को नीर, रंगन को नीर, कान्हा ने ….।
लाज छोड़ मोय दीनी गारी,

कैसे धरूँ धीर, कैसे धरूँ धीर, कान्हा ने ….।
नरम कलैया पकर मरोरी,

ऐसौ है बेपीर, ऐसौ है बेपीर, कान्हा ने ….।
हार मेरो तोर्‌यो पकर लिपटाई,

मेरो फार्‌यो चीर, मेरो फार्‌यो चीर, कान्हा ने ….।
बीरी लै मुख आप खवावै,

मारै नैनन तीर, मारै नैनन तीर, कान्हा ने ….।
ऊधम पै हू प्यारो लागै,

अचरज मेरी बीर, अचरज मेरी बीर, कान्हा ने ….।
अँखियाँ प्यासी रहैं रैन दिन,

देखन यदुवीर, देखन यदुवीर, कान्हा ने ….।
लाख लोग नगरी बसैं,

सब लागै भीर, सब लागै भीर, कान्हा ने ….।
रसिया बिना लगै सब सूनो,

छेदै शमशीर, छेदै शमशीर, कान्हा ने ….।।

 

होरी खेलै तो आय जैयौ बरसाने छैला श्याम ।।
मस्त महीना फागुन कौ सुन रसिया नन्दकुमार ।
मेरौ तेरौ नेह जुर्‌यो है जोवन धूँवाधार ।
तू साज बाज ते आय जैयो बरसाने छैला ….।।
इकलौ इकलौ जो खेलै तो गहवर मिलियौ लाल ।
रंग बिरंगे फूल तोर कै मारूँ तेरे गाल ।
तू मन की हौंस बुझाय जैयो बरसाने छैला ….।।
बरस दिना है माखन खायो चोरी कर घनश्याम ।
देखूँगी वा दिन तोकूँ सूधी नाय ब्रज की बाम ।
तू अपनो जोर जमाय जैयो बरसाने छैला ….।।
डारूँगी मैं रंग वैजंती हरौ गुलाबी लाल ।
भर पिचकारी मारूँ तक-तक और उड़ाऊँ गुलाल ।
तू फगुवा लैकै आय जैयो बरसाने छैला ….।।
लठामार जो खेलै प्यारे संग में लैयो ढाल ।
तक-तक लठिया मारूँ उछर बचैयो तू नन्दलाल ।
सिर पगिया बाँधे आय जैयो बरसाने छैला ….।।

होरी के खिलार भाँमते योंही जान न दैहों ।।
रंग भीनै बागे बनि आए जागे भाग हमारे
नैनन में भरि राखो फगुआन लैहौं ।।१।।
न्यारे ह्वै मुख मॉँढ़िहों अँखियाँ न अँजौहों ।।
बीरी पलटि न और की तुम लेहु काहु की
प्यारे औरें भरनन दैहों न्यारे ही खिलैहों ।।२।।
मोहनि मूरति साँमरी हँसि हृदै लगैहों ।।
सूरदास मदनमोहन सँग हिलमिल दोऊ
जलकी तरंग जैसे जलहि समैहो ।।३।।

मैं कैसे होरी खेलूँ री मन मोहन मुरली वारे ते ।।
ऊँची अटा पै रहन हमारी,

नई-नई मैं घूँघट वारी,

सबै करैं मेरी रखवारी,

फाग मच्यो ढप बाजन लागे सुन लीनी पिछवारे ते ।
होरी खेल रहे गिरिधारी,

गीतन की धुनि लागै प्यारी,

सबरी रात नाचैं मतवारी,

सुन-सुन मेरी पिंडुरी काँपै फुंदना लट्क्यौ नारे ते ।
जोबन की मदमाती सखियाँ,

रंग रंग की पहरैं फरियाँ,

सैन चलावैं रस की घतियाँ,

होरी कौ रस लेवैं देवैं जुलमी औगुनहारे ते ।
गली-गली में फाग मच्यौ है,

रात दिना कौ खेल जम्यौ है,

नीको छैला श्याम नच्यौ है,

झमक जाय के नाचन लागीं नन्दलाल हुरियारे ते ।।

नव कुंज सदन में आज रँगीली होरी ।

इत स्यामा उत स्याम मनोहर खेलत उमंग न थोरी ।।१।।
छल बल घात लगावत मोहन अंग बचावत गोरी ।
सावधान दोउ सुघर सिरोमनि अपनी अपनी ओरी ।।२।।
कोक कला कल केलि परस्पर जोबन जोर किसोरी ।
चतुर खिलार लाड़िली लालन तुम जनि जानहु भोरी ।।३।।
हा हा करौ परौ पाँयन अब ना चलिहै बरजोरी ।
भगवत रसिक उदार स्वामिनी देहै सरबस छोरी ।।४।।

अँगिया मैं का पै रंगवाऊँ री, रंगरेजा रंग नाय जानै ।।

ऐसी अँगिया मैं रंगवाऊँ,

वाय पहर होरी खिलवाऊँ,

देखत ही रसिकन बिकवाऊँ,

फागुन खूब मनाऊँ री रंगरेजा रंग नाय जानै ।
वा अँगिया में बाग लगाऊँ,

बेला फूल चमेली लाऊँ,

गूँथ-गूँथ के हार बनाऊँ,

छैला को पहराऊँ री रंगरेजा रंग नाय जानै ।
वाई में रंगवाऊँ पपैया,

पीउ पीउ की रटन लगैया,

वा में पवन चलै पुरवैया,

मोरन कूँ नचवाऊँ री रंगरेजा रंग नाय जानै ।
वा अँगिया में महल रंगाऊँ,

वा में पचरंग पलँग बिछाऊँ,

गिलम गलीचा तकिया लाऊँ,

वा में प्रियतम पाऊँ री रंगरेजा रंग नाय जानै ।

सखी सब है गई लाल ही लाल ।

ऐसौ रंग चल्यौ पिचकारिन, ऐसी उड़यौ गुलाल ।।
लाली लाल लाल भये लालहु, लाल भईं बृजबाल ।।
तरुवर लाल लाल भये सरवर, शुक पिक लाल मराल ।।
धेनु लाल बृजरेनु लाल भई, लाल भये सब ग्वाल ।।
श्रीराधा ललितादि लाल भईं, लाल भये गोपाल ।।

होरी आई री, बिरज में होरी आई री ।
गैल गिरारे होरी है रही, घर घर छाई री ।।

अपनी अपनी जोट लाग ते सब कोई खेलैं फाग,
बड़ौ अनोखौ नन्द महर को जोट न देखै लाग ।
कोई खेलै छिरका छिरकी पिचकारी लै मार,
मोहन ऐसी होरी खेलै गागर सिर पै ढार ।
रंग-रंग के लियो गुलालन मूठ मूठ रहे मार,
नन्द को ऐसो भायौ खिलारी भर-भर पोटैं मार ।
कोई उझकै सैन चलावै घूँघट देय उघार,
नन्द को ऐसो है मदमातौ चोली देवै फार ।
कोई छांडै हरो गुलाबी रंग बैजंती लाल,
श्याम रंग में भीतर बाहर रंग दीनी गोपाल ।
सबै रंग मिट जावैं होरी के धोये एक बार,
श्याम रंग दिन दूनो निखरै धोऔ बार हजार ।।

हरि कौ सुख विलसि, असीस सुनावति सजनी ।
दम्पति भरि अनुराग, विपिन संतत दिन रजनी ।।
कौतिक नाना रचत, सींव कानन नहिं तजनी ।
वृन्दावन हित रूप, धन्य जे इहिं सुख भजनी ।।

होरी खेल अति रँगमगे ।

किए सब अभिलाष पूरन, कुँज मारग लगे ।।
वारि पहुपांजुलि सखी, अलसात रजनी जगे ।
वृन्दावन हित रूप पौढ़े, केलि रस जगमगे ।।

चढ़ के नन्द गाँव पै आईं गोपी बरसाने वारी ।।
नंद भवन घेर्‌यो है जाई,

ऊपर चढ़ के छिपे कन्हाई,

पकरी जाय यशोदा माई,

कहाँ छिपाये कुँवर आपने बोलो महतारी ।
हमें दिखाओ अपने लाला,

किये लाल यशुदा के गाला,

रंगन करीं महर बेहाला,

दियौ बताय यशोदा ऊपर ढूँधौ गिरिधारी ।
ऊपर चढ़ पकरी मन मोहन,

सब मिलके लागी हैं गोहन,

गुलचा दिये कटीली भौंहन,

कैसे आय छिप्यौ होरी में भड़ुआ बटमारी ।
छीन लई मुरली  पीताम्बर,

दियो ओढ़ाय रंगीली चूनर,

लहँगा फरिया मोतिन झालर,

काजर बेंदी कमर कौंधनी करी एक नारी ।
सब मिलि घूँघट मार नचावैं,

यशुदा की छोरी बतरावैं,

देख-देख सब हँसैं  हँसावैं,

यशुदा की गोदी बैठारी लाली है प्यारी ।
मैया  भेद  समझ  न  पाई,

बहू श्याम की यह मन भाई,

या   आसा   दुलरावै   माई,

चूमत समझ हँसी सब गोपीं हँसैं देय तारी ।।

राधा नव ब्रजबाल होरी खेलैं

नंदलाल ब्रजबाल होरी खेलैं ।।

बरसाने में पकरि कृष्ण को छीन पीताम्बर छीनी मुरली,
भर पिचकारी गालन मारी नैनन मारी छतियन मारी ।
सररररररर , राधा नव ब्रजबाल होरी खेलैं ।।
अँखियन में कजरा जू लगायो, रंगबिरंगो भडुवा कर दियो,
फगुवा लै के गुलचा मारै बोली ऐयो फिर खेलन कूँ ।
अररररररर, राधा नव ब्रजबाल होरी खेलैं ।।
छूट के आये ह्यां मनमोहन खीजीं सब ग्वालन की टोलन,
भर-भर पोट लदे अपने सिर रहे उड़ाय अबीर की झोरन ।
झरररररर, राधा नव ब्रजबाल होरी खेलैं ।।
लाल भई सब गोपी जमुना लाल भई सब बादर लाल,
लाल चूनरी लालइ सारी लाल भई मोतियन की माल ।
लररररररर, राधा नव ब्रजबाल होरी खेलैं ।।

आज देखो रँग है रँग है रँग है, रसिकन्ह केरो सँग है ।।

रँग है मथुरा रँग वृन्दावन, कुञ्ज गलिन में रँग है ।।१।।
रंगहि महलन रंगहि मजलस, रंग बदन सब अँग है ।।२।।
रँग गढ़ गोकुल रँग बरसानो, रंग श्री गोवरधन है  ।।३।।
‘सूरदास’ रँग गावत जाके, राधा कृष्ण को सँग है ।।४।।

तेरे जौवन कौ मन मोहन है रिझवार
रूप सलौनी व गज गौनी, रूप जौवन दिन चार ।
भावँर सी फिरवौ करौ, यह तुम्हरौ क्यौ हार ।
“दया सखी” घनश्याम लाल सों, मिलले गल भुजडार ।

मदन मोहन की यार गोरी गूजरी ।
सब ब्रज के टोकत रहै, ताते निकसी घूँघट मारि ।।
जो कोऊ झूठे कहे, आये मदन मुरारि ।
रहि न सकै इत उत तकै, दुरि देखे बदन उघार ।।
तनसुख की सारी लसै हो, कंचन सौ तन पाइ ।
मनो दामिनि की देह सौ, हो रही जोन्ह लिपटाइ ।।
धरति पगति लाली फवै, मरै ढरै रित जाइ ।
काच करौती जल रंग्यौ, कहु यहै जुगत ठहराइ ।।
कटि नितंब ढिंग पातरौ, हो उरज भार अधिकाइ ।
लग्यौ लंक मनु लाल कौ, वाकी लचकनि लचक्यो जाइ ।।
वरन-वरन पट पलटई हो, नूतन-नूतन रंग ।
तब इत उत निकसत फिरत, हरिहि दिखावै रंग ।।
छूटी अलक नैंना बड़े हो, ओप्यो सो मुख इंदु ।
अरुन अधर मुसकात से दिये, भाल सिंदूर को बिंदु ।।
लगन लगी नंदलाल सों ही, करे निर्वाहन काज ।
चढ़्यौ चाक चित चतुर कौ, वाके प्रेमहि आयो राज ।।
लाल लखें लालच बढ़े, उत त्रास पियै पियराइ ।
यह संजोगिनि विरहिनी ताते, अरुझी बीच सुभोइ ।।
नर नारी एकतं भए हो, मिलि-मिलि करैं चबाव ।
सिरोमनि प्रभु दोउ सुनै, ताते बढ़े चौगुने चाब  ।।

होरी खेलि खेलि रस छाके ।

रचति हैं चोंज रसिकनी नागरि, लाल रसिक रिझवार सदा के ।।
कबहूँ हो-हो कहि उर उरझत, परबस आइ परत अबला के ।
वृन्दावन हित रूप कहा कहौं, फागुन कौतिक चरित लला के ।।

मेरे मन की समझै कौन जूझ रहे रेलापेली में ॥
लोग यहाँ लाखन जुरे होरी के खिलवार,
रस को मरम न जानही जानैं कहा गमार ।
चिपट जाय गुड़ की भेली में ।। मेरे मन की …
रूप देख सब कोऊ खिचैं जो घूँघट बिच होय,
सांची प्रीति पतंग की तन मन डारै खोय ।
लिपट जाय अगिन नवेली में ।। मेरे मन की …
यह जोबन दिन चार कौ थोरे याके खेल,
रसिया को रस जो पिये अमर होय यह बेल ।
रसिक क्यो बिक गयो धेली में ।। मेरे मन की …
गुड़ की भरी परात ते मिश्री की एक डरी,
मोधू की सब रात बुरी छैला की एक घरी ।
धर्‌यो का ठेला ठेली में ।। मेरे मन की …
बाँको रसिया नान कौ बाँकौ वा कौ प्रेम,
जाकौ जग फीको लगै सोई साधै नेम ।
चढ़े गिरिधर की हवेली में ।। मेरे मन की …

खेलें स्यामा-स्याम री आज कुंजन में होरी
नंदगाम सों आये सखा सब बरसाने की बाम री ।।१।।
गहवरवन और खोरसाँकरी कुँज कुटी निज धाम री ।।
राधे कूँ मनमोहन कीये मोहन बनाय दिये नारि री ।।२।।
हाथन मेंहँदी पाँय महावर बेंदी लगाय दई भाल री ।।
कहत दास नवनीत पियारौ जपूँ तिहारौ नाम री ।।३।।