द्वितीय संस्करण |
ब्रज बालिका मुरलिका शर्मा श्री मान मन्दिर सेवा संस्थान, बरसाना, मथुरा |
दधिविक्रयार्थं यान्त्यस्ताः कृष्ण–कृष्णेति चाब्रुवन् । कृष्णे हि प्रेमसंसक्ता भ्रमंत्यः कुंजमंडले ॥ प्रेम के पागलों का एक समुदाय ही ब्रज है । गोपी दधि मटकी लेकर कुञ्जों में जा रही है, वनों में कौन दधि खरीदेगा? यह प्रेम की मस्ती, प्रेम की लगन, जो बड़े‑बड़े योगी ज्ञानी नहीं जान सकते । गोपी, गोपाल को टेर रही है । दही का नाम भूल गयी, “दही लो-दही लो” की जगह कह रही है “कृष्ण लो-कृष्ण लो” । यह भी भूल गई कि यह कौन सा गाँव है, यह बरसाना है !!! कि संकेत !!! कि नन्द गाँव है !!! कुछ पता नहीं । सिर्फ मटकी शीश पर है । उसको क्या आनंद मिल रहा है, हम इसे समझ ही नहीं सकते, वहाँ तो प्रेम है । “अनन्यः सर्वत्र श्री कृष्णैकदृष्टि” इस भाव से यात्रा करना ही रसीली ब्रज यात्रा है । |
रसीली ब्रज यात्रा
|
“अनन्त अपार ब्रज रस सागर एक पुस्तक के रूप में”
|
रसीली ब्रज यात्रा
लेखिका
ब्रज बालिका मुरलिका शर्मा
प्रकाशक
श्री मान मन्दिर सेवा संस्थान
गहवर वन, बरसाना, मथुरा
उत्तर प्रदेश २८१ ४०५
भारतवर्ष
प्रथम संस्करण
प्रकाशित १३ सितम्बर २०१३
श्री राधा अष्टमी, भाद्रपदा, शुक्ल पक्ष, २०७० विक्रमी सम्वत्
द्वितीय संस्करण
प्रकाशित १७ अगस्त २०१४
श्री कृष्ण जन्माष्टमी, भाद्रपद , कृष्ण पक्ष, २०७१ विक्रमी सम्वत्
सर्वाधिकार सुरक्षित २०१४ – श्री मान मंदिर सेवा संस्थान
Copyright© 2014 – Shri Maan Mandir Sewa Sansthan
http://www.brajdhamseva.org
भारतवर्ष में मुद्रित
ISBN : 978-81-928073-0-0
पुस्तक के विषय में
ब्रज रस के अतल-तल में नित्य स्थित, रस स्थल श्री बरसाने के परम विरक्त सन्त अनन्त श्री युत् श्रीश्री रमेश बाबा जी महाराज के मुख से मुखरित शब्द ही यहाँ पुस्तक के रूप में हैं ।
ऐसे उदार व्यक्तित्व के संरक्षण में गत् २५ वर्षों से चल रही “श्रीराधा रानी ब्रज यात्रा” की रजत जयन्ती के उपलक्ष्य में ‘राधा अष्टमी’ के पावन पर्व पर विमोचित, ब्रज रस जिज्ञासुओं के लिए उदार विचारों से संयुक्त यह ब्रज दिग्दर्शिका “रसीली ब्रज यात्रा” अनुपम है ।
आशीर्वादात्मक सम्मति
श्रीधाम बरसाना की परम पुनीत रमणीक स्थली गहवर वन में जन्मी, ब्रज बालिका मुरलिका द्वारा लिपिबद्ध यह ग्रन्थ “रसीली ब्रजयात्रा” अभूतपूर्व है किन्तु अनन्त को शब्दों में कैसे व्यक्त किया जा सकता है? महाकवि नन्ददास जी का भी यही कथन है –
“नन्ददास चातक की चोंच पुट सब घन कैसे समात”
स्वयं महाकवि नन्ददास जी अनन्त सौन्दर्य व अनन्त भगवद् रस का वर्णन नहीं कर पाए, हार मानकर बोले कि एक पपीहे की चोंच में सारा घन कैसे आ सकता है । इसी तरह यह ग्रन्थ ब्रज के वैभव का दिग्दर्शक अवश्य है, तथापि धाम के सम्पूर्ण माहात्म्य का इसमें समावेश सम्भव नहीं है ।
है काहू के ढोटा श्याम सलोनो गात ॥
आई हौं देख खिरक मुख ठाडो न कछु कहन की बात ।
कमल फिरावत नयन नचावत मो तन मुरि मुस्कात ॥
नख शिख रूप अनूप रूप छवि कवि पै वरनी न जात ।
‘नन्ददास’ चातक की चोंच पुट सब घन कैसे समात ॥
कृतज्ञता प्रकाशन
यद्यपि सर्वथा निरपेक्ष भक्तों को प्रशंसा से उतनी ही विरक्ति होती है, जितनी कि यश लोलुपों को अपयश से ।
प्रभवो ह्यात्मनः स्तोत्रं जुगुप्सन्त्यपि विश्रुताः ।
ह्रीमन्तः परमोदाराः पौरुषं वा विगर्हितम् ॥
(भा. ०४/१५/२५)
किन्तु शिष्टाचार की दृष्टि से कृतज्ञता प्रकाशन आवश्यक है ।
गुणायनं शीलधनं कृतज्ञं वृद्धाश्रयं संवृणतेऽनु सम्पदः ।
प्रसीदतां ब्रह्मकुलं गवां च जनार्दनः सानुचरश्च मह्यम् ॥
(भा. ०४/२१/४४)
प्रथम कृतज्ञता तो मेरी, मेरे पितृव्य (ताऊ जी) कथा प्रवक्ता – डॉ. रामजी लाल शास्त्री जी के प्रति है जिन्होंने मुझे भौतिक शिक्षा जिसे काकभुशुण्डि जी ने खरी का दूध कहा है –
कहु खगेस अस कवन अभागी।खरी सेव सुरधेनुहि त्यागी ॥
(रा.च.मा. उ..का. ११० /७)
खरी के दुग्धपान से बचाकर श्री राधामान विहारी लाल की चरण-शरण में पहुँचाया, जिससे मुझे आध्यात्मिक जीवन की प्राप्ति हुई । उस प्रयास में मातृवत् पोषण करने वाली मेरी दोनों पितृश्वसा लक्ष्मी देवी व किशोरी देवी का भी योगदान अविस्मरणीय है, चिरऋणी हूँ मैं इनकी । स्वयं को ब्रजबालिका लिखती हूँ क्योंकि मैं एक अनाथ, असहाय बालिका मात्र हूँ । श्रीजी की ही कृपा से ब्रज में जन्म होने से ब्रजबालिका बनी हूँ ।
भगवल्लीलाओं का साक्षी विस्तृत ब्रज भू-भाग जिसके अनुसंधान में कृष्णावतार से आज तक कितने ही प्रयास हुये हों परन्तु स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं हो सका । ऐसे दुरुह कार्य में एक असहाय अबला अल्पज्ञान बालिका की क्या सामर्थ्य जो सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र परिधि को अपनी लेखनी का विषय बना सके? परन्तु गुरुदेव की व श्रीजी की असीम अनुकम्पा जिसको मिल जाय फिर उसके लिए असम्भव क्या? भगवत्कृपा व प्रेरणा के फलस्वरूप ऐसा संयोग बना कि श्री मानमन्दिर के निरपेक्ष संत जिन्होंने ब्रज एवं बृहद् ब्रज के गाँव-गाँव में जाकर अथक प्रयास किया और ब्रज क्षेत्र की वास्तविकता को जाना । रसीली ब्रज यात्रा पूर्व खण्ड व ब्रहद् ब्रज यात्रा परिचायक रसीली ब्रज यात्रा के उत्तर खण्ड में अपूर्व सहयोग प्रदान कर ब्रजवासियों व ब्रजप्रेमी जनों का सर्वाधिक हित किया है, यदि उन सुनामधन्य संतों की चर्चा यहाँ नहीं की जाय तो सम्भवतया यह खोजपूर्ण ब्रजसाहित्य अपूर्ण सा ही रहेगा । ग्रन्थ की पूर्णता हेतु उन सुनामधन्य संतों की चर्चा परमावश्यक है ।