पिछले 200 दिनों से राजस्थान के भरतपुर जिले में डीग तहसील के ग्राम पसोपा में साधू संतों व हज़ारों ग्रामीणों नगर व पहाड़ी तहसील में पड़ रहे आदिबद्री एवं कनकांचल के हिस्से को खनन मुक्त करा वन विभाग में देने के मांग को लेकर धरने पर बैठे | उल्लेखनीय है कि नवम्बर 2009 में साधू संतों व विश्वभर के कृष्णभक्तों की भावनाओं को गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही डीग व कामां तहसील में पड़ रहे ब्रज के पर्वतों को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर एक अत्यंत सहरानीय कार्य किया था | तब स्थानीय प्रशासन की जानकारी के अभाव के कारण उक्त में से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्वत कन्कांचल व आदिबद्री का कुछ हिस्सा जो कि तहसील नगर व पहाड़ी में पड़ता है एवं ब्रज का अभिन्न अंग है तहसील में अंतर होने के कारण वन क्षेत्र घोषित होने से छूट गया था | आदिबद्री व कनकांचल पर्वत के उसी अभिन्न हिस्से को खनन मुक्त कर वन विभाग को हस्तांतरित करने की मांग को लेकर वहां के साधू संत व स्थानीय ग्रामवासी पिछले 10 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं व कई बार प्रदर्शन, धरना आदि कर चुके हैं | इस बार पुन: पूज्य श्री रमेश बाबा महाराज, जिनसे तीनों राज्यों में फैले ब्रज क्षेत्र के ब्रजवासी ही नहीं बल्कि विश्व भर के कृष्ण भक्त उनके आध्यामिक शक्ति व ज्ञान से प्रभावित है, उन्हीं की प्रेरणा से ब्रज के साधू संत व स्थानीय ग्रामवासी 16 जनवरी 2021 से अनिश्चिकालीन धरने पर बैठ हुए हैं एवं राजस्थान की सरकार से उनकी सर्वथा नैतिक व अत्यंत आवश्यक मांग पर अविलम्ब कार्यवाही की अपेक्षा कर रहे है |
विगत 6 अप्रैल को हमारे प्रतिनिधिमंडल की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी भेंट हुई थी जिसमें उन्होंने शीघ्र ही दोनों पर्वतों को खनन मुक्त कर संरक्षित करने का पूर्ण आश्वासन दिया था एवं इसी आश्वासन के चलते हमने अपने धरने को शांतिपूर्ण तरीके से जारी रख आंदोलन को स्थगित कर दिया था । लेकिन आज उनके द्वारा दिए गए आश्वासन को लगभग 4 माह होने के बाद एवं ग्राम पसोपा में जारी धरने के 200 दिन के पश्चात भी अभी तक हमारी पूर्ण न्यायोचित मांगों को लेकर कोई भी सकारात्मक कार्यवाही नहीं हुई है । विश्वभर के कृष्णभक्तों, पर्यावरणविदों व साधु संतों के अलावा राजस्थान में पड़ रहे ब्रज क्षेत्र के अधिकांश वर्ग के लोग चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान या फिर किसी भी जाति व कौम के हो वह सब आदिबद्री व कनकाचल पर्वत पर चल रहे खनन के सख्त विरोध में हैं ।
यहां यह बताना बहुत महत्वपूर्ण होगा की अब आंदोलनरत साधु संतों व ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त हो गया है एवं वह किसी भी सीमा तक जाने के लिए तत्पर हैं। यहां तक कि कई साधु आत्मदाह करने का भी पूर्ण विचार बना चुके हैं वहीं कई सैकड़ों ग्रामीण व साधु-संत आमरण अनशन पर भी बैठने का निर्णय ले चुके हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में व आसपास के इलाके में तनाव की स्थिति बन गई है व साथ ही अप्रिय घटनाओं घटित होने की पूर्ण संभावना भी बन रही हैं । इसको लेकर आन्दोलनकारियों द्वारा दिनांक 25 जुलाई से 4 अगस्त तक उक्त क्षेत्र में निर्णायक ‘क्रान्ति यात्रा’ भी प्रारम्भ की जा चुकी है व सरकार द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं किए जाने की स्थिति में 5 अगस्त से अंतिम लड़ाई की भी घोषणा की जा चुकी है ।
कोरोना मानदंडो व मुख्यमंत्री पर विश्वास के चलते इस आंदोलन को अभी तक कोई व्यापक रूप प्रदान नहीं किया गया है अन्यथा ऐसा करना हमारे लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं है ।