ब्रजभूमि भारतीय जनमानस के आकर्षण का केन्द्र रही है क्योंकि भारत की संस्कृति का यह मूल आधार है । भगवान् श्रीकृष्णावतरण क्षेत्र व लीलास्थली होने से करोड़ों भक्तों की आस्था भी यहाँ से जुड़ी है तभी तो भारत वर्ष के ही नहीं अपितु सारे संसार से श्रद्धालु यहाँ आते हैं, दर्शन करते हैं व इस पवित्र भूमि की परिक्रमा करते हैं ।

परिक्रमा तो जगत-पिता ब्रह्मा ने भी गौवत्स एवं ग्वाल-बाल हरण के पाप से निवृत्ति के लिए की थी और वे निष्पाप हुए ।

ब्रजरज का सेवन आज के बड़े से बड़े पापात्माओं को भी निर्मल बनाने वाला है । ऐसी महिमा किसी अन्य पुण्य कार्यों में नहीं है, तभी तो बड़े-बड़े संत-महन्त, राजा-महाराजा अपना कुल, वैभव, धनधान्य छोड़कर यहाँ की रज का आश्रय लेते हैं परन्तु कालक्रम से लुप्तप्रायः होता हुआ ब्रज का स्वरूप यथा समय महात्माओं को उद्वेलित करता रहा है ।

चैतन्य महाप्रभु, वज्रनाभजी, नारायण भट्ट जी आदि ने ब्रज को प्रकट किया, बचाया परन्तु कलिकाल जैसे सब कुछ निगल ही जायेगा । बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ, आधुनिक सुख-सुविधाएँ तथा हमारी महत्वाकांक्षाओं ने स्वरूप को और भी विकृत कर दिया फिर भी सनातन नाम वाली यहाँ की संस्कृति अपने नाम से भ्रष्ट कैसे हो सकती है ।

भगवान् महापुरुषों के रूप में अवतरित होकर जीवों के कल्याणार्थ उसे सदा जीवित रखते हैं । ऐसे ही परम पुरुष विरक्त संत श्रद्धेय श्री रमेश बाबाजी जो प्रयाग की पावन भूमि में अवतरित हो बाल्यकाल से ही ब्रजाराधन का स्वप्न देखते हुए वैराग्य ग्रहण कर श्रीधाम बरसाना के ब्रह्माचल पर्वत पर मानिनी श्रीराधा के तत्कालीन खण्डहर भवन ‘श्री मानमन्दिर’ में रहे ।

उस समय यह स्थल चोर-डाकुओं का अड्डा था परन्तु महापुरुष अपनी पावन सन्निधि से जनमानस को तो पवित्र करते ही हैं साथ ही क्षेत्र के भौम स्वरूप को भी सजाते-संवारते हैं, वही किया श्री रमेश बाबा जी ने । लुप्त प्रायःहोते हुए ब्रज के स्वरूप को उन्होंने पिछले ६० वर्षों के अथक प्रयास से बचाया ।

श्री रमेश बाबा जी के विविध प्रयासों का उल्लेख “रसीली ब्रज यात्रा” (जो ब्रज बालिका मुरलिका जी की अद्भुत रचना है) में ब्रज भक्तों के स्वान्तः सुखार्थ आवश्यक समझकर मैं उद्धृत कर रहा हूँ ।

ब्रज के वनों का संरक्षण

वन, उपवन, प्रतिवन, अधिवनों से आवृत यह ब्रजभूमि बड़ी रमणीय थी । भगवान् ने अपनी लीलाएँ किन्हीं भवनों में नहीं की बल्कि ये वन ही उनकी लीलाओं के केन्द्र थे ।

धीरे-धीरे सारे वन नष्ट हो गये, मात्र कुछ वन ही बचे थे, उन्हें भी भूमाफियाओं की कुदृष्टि लगी हुयी थी ।

ऐसे वनों में श्री किशोरी जी के निज करकमलों से लगाया हुआ गहवर वन भी समाप्ति के कगार पर था परन्तु “श्री मान मन्दिर सेवा संस्थान” के वीतरागी संत श्री रमेश बाबा जी ने ४० वर्ष के संघर्ष के बाद बचाया ।

निरन्तर स्थानीय लोगों के भारी विरोध के बाद भी निष्ठा के साथ प्रयत्नशील बाबा ने मेरे पिता श्रीप्रकाश जी जो तत्कालीन ग्राम प्रधान थे और बाबा के भक्त थे, जिनके द्वारा प्रस्ताव कराकर आरक्षित वन कराया और आज वह सरकारी विभाग (वन विभाग) के आधिपत्य में होने पर भी मान मन्दिर द्वारा पोषित है और बड़ी रमणीयता को प्राप्त हो रहा है ।

इसका संरक्षण कोई सहज में नहीं हुआ निरन्तर ४६ वर्षों तक लोगों का विरोध सहना पड़ा और अन्त में श्रीजी ने ही इसकी रक्षा कराई, ऐसे ही अनेक वन रक्षित हुए जैसे पाण्डव गंगा (बठैन), नौबारी-चौबारी (डभारा), दर्शन वन, कलावटा (काम्य वन), आदि अनेक स्थलों में सघन वृक्षारोपण किया गया ।

ब्रज में वृक्षारोपण

आज सारे ब्रज में लाखों वृक्ष ‘श्री मान मन्दिर’ द्वारा लगाए जा रहे हैं ।

ब्रज के सरोवरों का संरक्षण

राधा-कृष्ण की लीलाओं के साक्षी अनेक सरोवर भी रहे जिनमें वे स्नान करते । ब्रज में कितने कुण्ड थे यह तो कल्पनातीत है, अकेले नंदग्राम में ही ५६ कुण्ड थे, काम्य वन में ८४ कुण्ड थे । शनैः‑शनैः कुण्ड भी लोगों की वासनाओं के शिकार होते गये ।

‘श्री मानमन्दिर’ द्वारा ब्रज के अनेक कुण्डों का जीर्णोद्धार किया गया । ग्राम डभारा में तो कुण्ड के स्थल को खोजकर उसकी जमीन किसान से क्रय की गई फिर वहाँ ‘रत्न कुण्ड’ का पुनर्निर्माण हुआ ।

निम्न कुण्डों एवं सरोवरों का जीर्णोद्धार ‘श्री मान मन्दिर’ द्वारा हुआ ।

1.       रत्न कुण्ड (डभारा) 2.       ग्राम धमारी का कुण्ड
3.       विह्वल कुण्ड (संकेत) 4.       गोमती गंगा (कोसी कलां)
5.       कृष्ण कुण्ड (नन्द गाँव) 6.       ललिता कुण्ड (कमई)
7.       बिछुवा कुण्ड (बिछोर) 8.       लोहरवारी कुण्ड
9.       गया कुण्ड (काम्यवन) 10.             नयन सरोवर (सेऊ)
11.                  लाल कुण्ड (दुदावली) 12.             बिछुआ कुण्ड (जतीपुरा)
13.                  गोपाल कुण्ड (डीग) 14.             मेंहदला कुण्ड (हताना)
15.                  रूद्र कुण्ड (जतीपुरा)

ब्रज के दिव्य पर्वतों की रक्षा

ब्रज में यों तो त्रिदेव, पर्वतों के रूप में विराजमान हैं । गोवर्द्धन में गिरिराज जी स्वयं विष्णु भगवान् बने हैं, नन्द गाँव में शंकर जी नन्दीश्वर पर्वत तथा बरसाना में ब्रह्मा जी ब्रह्माचल पर्वत, इसके अतिरिक्त अष्टकूट, आदिबद्री, कनकाचल, सखी गिरि, रंकु पर्वत आदि अनेक पर्वतों के रूप में देवगण अवतरित हैं ।

इन पर्वतों पर खनन माफियाओं की ऐसी कुदृष्टि हुई कि अत्याधुनिक मशीनों तथा विस्फोटकों से इन्हें नष्ट किया जाने लगा । ‘श्री मान मन्दिर’ द्वारा इन सबका विरोध हुआ परन्तु धनाढ्य व मदान्ध माफियाओं ने ब्रज लीला के साक्षी व केन्द्र इन पर्वतों के धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व को न समझकर सरकारी तन्त्र के साथ मिलकर धन के बल पर नष्ट करने का प्रयत्न पूरी शक्ति के साथ किया । ईश्वरी शक्ति से आज तक कौन जीत पाया है । सखीगिरि पर्वत पर ब्रज रक्षक संत श्री रमेश बाबा महाराज ने अनशन प्रारम्भ कर ब्रज के दिव्य पर्वतों की रक्षा का संकल्प लिया ।

यद्यपि पचास वर्ष पूर्व भी उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री संपूर्णानंद से मिलकर ब्रज के खनन को बन्द कराया था परन्तु वर्तमान संघर्ष ने सारे ब्रज को ही नहीं अपितु राज्य सरकारों तक को झकझोर दिया था । अंत में ५२३२ हेक्टेयर भू‑भाग को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित कराकर ब्रज रक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किया ।

इसमें कई भक्तों ने अपनी जान जोखिम में डाल कर बड़ी-बड़ी विपत्तियों का सामना किया क्योंकि ब्रज लीला स्थलियाँ उनको प्राणों से भी अधिक प्रिय थीं । उनका संरक्षण किसी आराधना से कम नहीं था ।

गौमाता की रक्षा

ब्रजाराध्य श्रीकृष्ण को गायों से जितना प्रेम था उतना किसी से नहीं । यही कारण था कि उन्होंने गिरिराज पूजा कराई । गौपालन व गौचारण नंगे पैर किया । गोपाल के ब्रज में आज गायों की दुर्दशा से कोई अनभिज्ञ नहीं है ।

जिसे भारतवासी माँ कहते हैं वही माँ आज घरों से बाहर दर-दर की ठोकर खाती भटकती है या मांसाहारियों द्वारा दर्दनाक मृत्यु को प्राप्त होकर अस्तित्व को खो रही है ।

संत हृदय नवनीतवत् होता है । इस कारण ‘श्री मानमन्दिर’ के महाराजश्री ने गौरक्षा का विशेष अभियान २००७ में प्रारम्भ कर एक गौशाला की स्थापना “माता जी गौवंश संस्थान” के रूप में की, जिसमें ब्रज की अनाथ गायें तो पलती ही हैं, इसके अतिरिक्त बाहर से भी गायें यहाँ आती रहती हैं ।

एकमात्र यह ऐसी गौशाला है जहाँ गायें आती हैं तो मना नहीं किया जाता । ५-६ वर्षों में ही आज उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी गौशाला यहाँ बन गई, जिसमें लगभग २२,००० गौवंश मातृवत पल रहा है ।

गाय के गोबर, मूत्र के विविध उत्पादों के द्वारा ब्रज वासियों को धन सम्पन्न बनाना, निरोग बनाना, अन्यान्य लाभ दिलाना यह भी संकल्प उक्त संस्था का है, जिस पर कार्य प्रारम्भ हो रहे हैं । ब्रजवासी, ब्रजभूमि, भगवान् सभी का एक स्वरूप है, तीनों की सेवा लक्षित है ।

यमुना महारानी की रक्षा का प्रयत्न

यमुना जी के बिना ब्रज की महारानी (श्रीराधा) ने भी धराधाम पर आना स्वीकार नहीं किया था । ऐसी पतित पावनी यमुना महारानी आज ब्रज में हैं ही नहीं । यह बात ब्रज में अज्ञात थी, इस पर भी ‘श्री मानमन्दिर’ द्वारा शोध कार्य किया गया ।

प्रयाग से दिल्ली तक पद यात्रा कर जन चेतना जागृत की गई । हथिनी कुण्ड (हरियाणा) में यमुनाजी को रोक लिया गया है । १४० कि.मी. तक एक बूँद भी यमुना जल यमुना तल पर नहीं रहता ।

ब्रज में दिल्ली का मल-मूत्र ही आता है ।

कभी यमुना के निर्मल जल से सारा ब्रज पोषित था लेकिन आज वह जल विषरूप हो गया है ।

‘श्री मानमन्दिर’ से यमुना जी को लाने का बड़ा भारी प्रयत्न हुआ । लाखों ब्रजवासियों, भक्तों, श्रद्धालुओं द्वारा दिल्ली तक पदयात्रा हुई परन्तु सरकारी आश्वासनों ने संकल्प पूर्णरूपेण पूर्ण होने नहीं दिया परन्तु बाबाश्री का संकल्प भविष्य में अवश्य पूर्ण हो जायेगा ऐसा विश्वास है क्योंकि आज तक उनका कोई संकल्प अधूरा नहीं रहा । भगवल्लीलाओं की प्रमुख केन्द्र यमुना महारानी हैं ।

हरिनाम प्रचार प्रसार

ब्रजवासी वही है जो सतत् श्रीकृष्ण स्मरण चिन्तन करता है । ब्रज गोपियों के प्रत्येक कार्य में श्रीकृष्ण ही लक्ष्य होते थे ।

ऐसे ब्रज में आज आधुनिक परिवेश ने पुरातन स्वरूप को बिल्कुल मिटा दिया । इसे देखकर दयाद्रवित पूज्य श्रीरमेश बाबा जी ने गाँव-गाँव भगवन्नाम की अलख जगाने का बीड़ा उठाया ।

ब्रज एवं देश के लगभग ३२,००० गाँवों में भगवन्नाम प्रभात फेरियाँ प्रारम्भ कराई । इससे घर-घर चेतना फैली और कृष्ण कीर्तन होने लगा ।

श्रीराधारानी ब्रज यात्रा

ब्रज सेवा के कार्यों में बाबाश्री की ‘श्रीराधा रानी ब्रजयात्रा’ भी अपने में अलौकिक है । बाबा को यह अच्छा नहीं लगता था कि धनाभाव में कोई भावुक भक्त ब्रज यात्रा से वंचित रहे, इसके लिए उन्होंने सन् १९८८से पूर्ण रूपेण निःशुल्क वार्षिकी ब्रज यात्रा प्रारम्भ की जिसमें इस समय लगभग २०,००० ब्रज यात्री सम्मिलित होकर अपने भाग्य को सराहते हैं ।

यात्रियों के भोजन, आवास एवं उपचार आदि की समस्त सेवाएं ‘श्री मानमन्दिर’ द्वारा ही कराई जाती हैं । सतत् हरिनाम संकीर्तन से यात्रा का प्रत्येक क्षण, रस और प्रेम की अनुभूति कराता रहता है । ब्रज के दुरूह स्थलों की महिमा का उल्लेख बाबा महाराज द्वारा प्रतिदिन नृत्य-आराधना के पश्चात् किया जाता है ।

यही यात्रा है जिसने जाने कितनों को राधा माधव का अनन्य उपासक बनाकर सांसारिक मोह माया से सदा-सदा के लिए दूर कर दिया ।

“रसीली ब्रज यात्रा” की लेखिका बाल विदुषी मुरलिका जी भी इसी यात्रा से संस्कारवती होकर पूज्य श्री बाबा महाराज की अनुकम्पा से देश की विदुषी भागवत प्रवक्त्री बनीं ।

ब्रज यात्रा में सुश्री मुरलिका जी का अद्भुत योगदान चला आ रहा है । भागवत कथाओं से प्राप्त दैवी द्रव्य का बिना स्पर्श किये ही निःस्पृह भाव से सर्व समर्पण ब्रज सेवा में हो जाता है ।

यही नहीं जिस परिवार में वे पली-पोसी हैं, वह भी बड़ा अलौकिक है जहाँ रोजाना हजारों वैष्णव-संत-भक्त प्रसाद पाते हैं ।

इस तरह ‘श्री मानमन्दिर’ द्वारा ब्रज की जो सेवा हो रही है, उससे भगवद् भक्ति, ब्रज भक्ति, वैष्णव भक्ति की प्रेरणा सभी को मिल सके इस आशय से अपनी विचाराभिव्यक्ति की है ।

राधा कान्त शास्त्री

श्री मान मंदिर सेवा संस्थान

गहवर वन, बरसाना, जिला मथुरा

उत्तर प्रदेश २८१४०५, भारतवर्ष